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कभी कलम कुछ लिखना चाहती
भाव विभोर हो मैं कुछ लिख पाती
समय का चक्का चलता जाता
जिसका हाथ कोई थाम न पाता
बड़े-बड़े राजा-ऋषि- ज्ञानी
समय की महिमा से सब अनजानी
बीता समय कुछ याद दिलाता
आगे बढ़ने की राह दिखाता
वर्तमान की राह सरल है
कभी-कभी पीना पड़ता गरल है
भविष्य गर्भ में छिपा जो जीवन
था उसकी न पाता जीवन
दिव्य अलौकिक ज्योतिर्मय जीवन
दीपक की लौ सा जलता जीवन
दिव्य स्वप्न दिखाता जीवन
स्वप्न पूर्ण कराता जीवन
घृत- तेल से जलता दीपक
बाती से द्रव पीता दीपक
द्रव शेष बुझ जाता दीपक
नवजीवन फिर पाता दीपक

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