आज फिर से क्रंदन कर रही धरती
पहुंची वैकुंठ विष्णु के धाम
बोझ सहन नहीं हो रहा
आओ पृथ्वी पर तुम राम
हर युग में मेरा रुदन सुन
कृपा आप मुझ पर करते
देर मत करो सुदर्शन धारी
देखो लाशों का ढेर गिरते
मैं अति दीन दुखी हूं भगवन
उद्धार करो जनमानस का
आ जाओ अब टेर सुन मेरी
दलन करो इस दानव का
हार गई मानव सभ्यता
आर्त होय पुकारत है
आ जाओ प्रभु आ जाओ
करती आपका स्वागत है
प्रहलाद भक्त ने पुकारा
खंभे से प्रकटे हो तुम
द्रोपदी की पुकार सुन
वस्त्र रूप में आए तुम
गज की पुकार सुनी प्रभु तुमने
ग्राह फंद से छुड़ाये तुम
मैं हूं धरा सुता आपकी
उद्धार मेरा कर दो प्रभु तुम
सागर मंथन करके प्रभु तुम
अमृत कलश फिर ले आओ
भक्तों के हृदय में फिर से
नवजीवन आस जगा जाओ