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धवल वस्त्र धारण कर आई,धरा पर माँ सरस्वती।
विद्या दायिनी, बुद्धि विधाता, माँ कर दो सब की पावन मति।
ज्ञान दीप की ज्योति जला दो, सुधरे सब की मनोवृति।
अज्ञान अँधेरा मिट जाए जग से, प्रेम- त्याग की हो पुनरावृति।।
तिमिर चीर, हय सवार रवि किरणें, धरा को धवल करती ।
नव ज्योत्सना ,नव उत्तेजना, सरसता जीवन में भरती।
पौ फटने की पावन बेला, मन्दिर में घण्टी बजती
पक्षी गण चहकते डोले, पणिहारी पनघट पर पानी भरती।

धवल हिमगिरी गर्भगृह से, निकली गंगा पावन हैं ।
बद्री -केदार सघन वन बहती, मन को बड़ी लुभावन हैं।
पांचों प्रयाग, चारों ही धाम , पवित्र तीर्थ मनभावन है।
ऋषिकेश -हरिद्वार की गंगा ,पतित- पावन, तरणतारण है।।
तड़ित दामिनी दमकन लागी ,घनघोर घटा बिखराई है ।
उमड़ घुमड़ मेघों की छटा, चलने लगी पुरवाई है ।
टिपिर- टुपुर मेह बूंदो से ,मही की माटी हरषाई है ।
धवल बादलों की छटा,हर एक मन को सुहाई है।।

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