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धीरज "धरणी" धरती है,बन दानवीर दूत।
काटते रहते जड़ उसकी, क्या मानव क्या पूत ।।

धारणा शक्ति धैर्य की,अद्भुत दिखाती खेल।
पूर्व- पश्चिम वालों का,हो जाता है मेल ।।

धीरज का फल मीठा होता, नयी नहीं कोई बात।
ऋतु आए फल होत है,चाहे हो कितनी बरसात।।

थोड़ा धैर्य,थोड़ा संयम, जो जीवन में अपनाते हैं ।
विपदा का पहाड़ काटकर,रास्ता नया बनाते हैं ।।

धीरज,धीरता, धर्म से, जो मानव जग में चलते हैं।
आँधी और तूफान से, कभी नहीं वो डरते हैं ।।

कछुआ और खरगोश दौड़ में, कछुआ जीत जाता है।
धैर्य से जो काम करता, वही मंजिल को पाता है ।।

जीवन कुँजी धैर्य है,पूँजी देख ना आपा खोयें।
परिश्रम करें चाहे जितना,रात चैन से सोये।।

मातृशक्ति अनमोल है,नौमास धीरज धरती है।
प्रसव पीड़ा सहन कर,नारी जननी बनती है।।

ताकत से बड़ा धैर्य है,कर ले यह स्वीकार ।
जहाँ काम आवे सुईं ,क्यों ताने तलवार।।

धीरज धरने वालों को,मिलती है सफलता।
सन्तोष की भी सीमा होती,समझे ना इसे कायरता।।

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