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अड़सठवें साल की पूर्णाहुति पर
एक आहुति मैंने दे डाली
अपने अहसास और भावनाओं पर
एक कविता मैंने लिख डाली
भावनाओं की आंधी
भ्रम में मुझको डाल रही
शब्द ही है मेरे अपने
यह मुझे समझा रही
हसरत भरी आंखें मुझे
स्वर्ण स्वप्न दिखा रही
स्वप्न कभी ना होते पूर्ण
एहसास मुझे करा रही
छिपा हुआ था भविष्य मेरा
गुमनामी के अंधेरे में
कहां डालूंगी अपना डेरा
जीवन के किस घेरे में
कुटिलता की एक-एक सीढ़ी पर
जब मैंने अपना पांव रखा
सबको प्यार दिया मैंने पर
खुद पाया जीवन में धोखा
भूली बिसरी बातें कुछ
याद मुझको आ रही
बीते दिनों की यादें
तड़पन दिल में जगा रही
सांसो की सरगम मेरी
गीत गुनगुना रही
सप्त स्वरों की वह धुन
मुझको कुछ सुना रही
चाह नहीं जीने की मेरी
मरना भी आसान नहीं
मेरी भावनाओं को समझो
दिल मेरा पाषाण नहीं

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