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ज्योति स्वरूप में विराजत शंकर, ज्योतिर्लिंग कहा जाता।
द्वादश ज्योतिर्लिंग धरा पर, शिव प्राकट्य से जुड़ा नाता।
बारह ज्योतिर्लिंग में शिवजी, साक्षात रूप में है विद्यमान।
दर्शन मात्र से मुक्ति मिलती, अविनाशी, शंकर, भोले भगवान।
सोमवार ज्योतिर्लिंग पूजा-ध्यान से, कई गुना बढ़ जाता पुण्य।
श्रावण मास में पृथ्वी लोक का, शिव पार्वती करते भ्रमण।
सात वारों में सोमवार, शिव जी को है समर्पित।
श्रावण मास मे भक्तजन, काँवर चढा, तंदूल, चंदन करते अर्पित।
महाशिवरात्रि को द्वादश ज्योतिर्लिंग का, जो व्यक्ति करता स्मरण।
सारे पापों से मुक्त हो जाता, खुशहाल रहता आमरण।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
प्रथम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, शिव- सती प्रेम का प्रतीक।
गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र, वेरावल बंदर गाह में स्थित।
नागर वास्तु शास्त्र से निर्मित,
धार्मिक-राजनीतिक विवादों से घिरा हुआ।
रहस्यमयी गुफाएँ,चंदन के जंगल, विस्तृत पत्थरों से बना हुआ।
प्राचीन भारतीय ज्ञान का, अद्भुत दृश्य यह दिखलाता।
श्री कृष्ण धरा से हुए विलीन, वेद पुराण गाथा गाता।
राजा दक्ष की सत्ताईस पुत्रियों का, चंद्र देव संग ब्याह हुआ।
रोहिणी नामक कन्या से, चंद्रमा का विशिष्ट प्रेम हुआ।
अपेक्षित,अपमानित छब्बीस पुत्रियाँ, पिता पास प्रार्थना करने आई।
बहुत समझाया दक्ष प्रजापति ने, सोम को बात समझ नहीं आई।
शाप दे दिया दामाद को, कलाएँ चंद्र की घटने लगी।
क्षय रोग से हो गए ग्रसित, ससुर की दुराशीष लगी।
ब्रह्म देव के पास गए, श्राप से पाने मुक्ति।
शिवजी की करो तपस्या, ब्रह्मदेव बताये युक्ति।
प्रभास क्षेत्र में शिवलिंग बना, घोर तपस्या किये चंद्रदेव।
तपस्या से हो प्रसन्न, अमरता का वर दिये महादेव।
शाप और वरदान की शक्ति, शशि की कलाएँ बढ़ती घटती।
पूर्णिमा को पूर्ण चँद्रमा, अमावस्या तक शनै: शनै: घटती ।
शिवलिंग में विराजे शंकर, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग नाम पाया।
प्रभास क्षेत्र में तपस्या करने से, "प्रभास पट्टन" क्षेत्र कहलाया।
सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन, जन्म- बंधन मुक्ति का दाता।
असंख्य भक्तों की आस्था, पाप निवारण हो जाता।
पुरातन काल से सोमेश्वर दर्शन, दिव्य चमत्कार दिखलाता।
चंद्रदोष से ग्रस्त साधक, दोषों से मुक्ति पाता।
चँद्रभागा राज्य के राजा सोमदेव ने, मंदिर का निर्माण किया।
शिवलिंग की पूजा स्थापना कर, सोमेश्वर शिव को नाम दिया।
कई बार हुए मुगल आक्रमण, कई बार निर्माण किया गया।
गुजरात के राजा भीमदेव ने, पुन: ज्योतिर्लिंग रूप में स्वीकार किया।
श्री मल्लिकार्जुन
दक्षिण दिशा का कैलाश,श्री शैल पर्वत, आंध्र प्रदेश में स्थित।
महापुराण,शिवपुराण,पद्मपुराण में, गाथा इनकी है विस्तृत।
सिद्धिक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध, श्री शैलम देवस्थानम्।
शिव शक्ति संयुक्त रूप में, मल्लिकार्जुन ज्योर्तिलिंगम्।
शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय-गणेश, प्रथम विवाह करना चाहते।
पृथ्वी प्रदक्षिणा कर पहले आए, शादी प्रथम, शर्त बतलाते।
देवता प्रदत्त मोर वाहन चढ, कार्तिकेय परिक्रमा करने भागे।
स्थूल काया,मूषक वाहन, तीक्ष्ण बुध्दि गणेश सोचन लागे।
अविलम्ब पृथ्वी परिक्रमा का, सुगम उपाय खोजे गणेश।
शिव पार्वती को साथ बिठा, सात प्रदक्षणा करी विशेष।
कार्य था यह शास्त्र अनुमोदित, मात-पिता हुए बड़े प्रसन्न।
ब्याह रचाया सिद्धि-बुद्धि संग, लाभ- क्षेम पुत्र हुए उत्पन्न।
कार्तिकेय परिक्रमा कर आये, यह देख हुए मन में खिन्न।
क्रोधित क्राँच पर्वत जा बैठे, मात पिता से हो अप्रसन्न।
माँ पार्वती चली मनाने, शिव ज्योतिर्लिंग में हुए प्रकट।
मल्लिका पुष्पों से हुई अर्चना, मल्लिकार्जुन विराजे कृष्णा नदी तट।
शिवरात्रि पर लगता मेला, भक्तजन आते करने दर्शन।
मनोकामना पूर्ण हो जाती, शिवलिंग का कर पूजन-अर्चन।
मोक्ष मार्ग ले जाने वाले, शिव भोले श्री मल्लिकार्जुन।
जीवन सफल होता भक्तों का, दर्शन करने आते जो श्रीशैलम।
राजा चंद्रसेन की राजधानी, श्री शैल पर्वत के थी निकट।
राज कन्या उनकी अति सुंदर, आयी उस पर विपत्ति विकट।
विपत्ति विशेष निवारणार्थ, कन्या को भेजा पर्वताश्रम।
सुंदर,शुभ,श्यामा गाय, राजकन्या संग भेजी आश्रम।
रात्रि वेला में गौ दूहकर, दूध चुरा लिया जाता।
किसका था काम यह ?, राजकन्या को समझ नहीं आता।
एक दिन संयोग वश, चोर को दूध दुहते देख लिया।
क्रोधित राजकन्या दौड़ी पीछे, एक शिवलिंग का दर्शन किया।
राज कन्या ने शिवलिंग पर, मंदिर का निर्माण किया।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, शिव शक्ति को नाम दिया।
श्री महाकालेश्वर
सात पुरी में पुरी एक, अवन्तिका पुरी नाम।
मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर में, श्री महाकालेश्वर धाम।
पुण्य सलिला शिप्रा नदी तट, उज्जैनी नगरी विख्यात।
परम पुनीत पावन मंदिर, श्री महाकाल ज्योर्तिलिंग प्रख्यात।
अवंतीपुर में तपोनिष्ट तेजस्वी, वेद पाठी रहते ब्राह्मण।
ब्रह्मा जी वर से हुआ शक्तिशाली, राक्षस एक नाम दूषण।
राक्षस के अत्याचार से पीड़ित, प्रजा ने शिव का किया आह्वान।
धरा फाड़ महाकाल रूपधर, ज्योतिर्लिंग में हुए विराजमान।
दूषण राक्षस का वध कर, भक्तों की रक्षा किये भगवन।
दक्षिण मुखी ज्योतिर्लिंग दर्शन से, मोक्ष पाते हैं भक्तजन।
मृत्यु के स्वामी शिव बताते, शरीर नश्वर ना करें अभिमान।
तन पर भस्म लगाते शिव, अंतिम पड़ाव का करते सम्मान ।
दु:ख-सुख,अच्छाई -बुराई, जल जाती चिता के संग।
राख पवित्र हो भस्म बन जाती, शिव लगा लेते जब अंग।
द्वादश ज्योतिर्लिंग में महाकालेश्वर की, भस्म से होती आरती।
पीपल, पड़ास, शमी, अमतलस, गाय के गोबर कण्डो से सजती।
त्रिलोकी में तीन मुख्य लिंग, स्वर्ग में तारक, पाताल मे हाटकेश्वर,
तांत्रिक सन्तो के लिए, मृत्यु लोक में महाकालेश्वर ।
बौद्ध धर्म में महाकाल को धर्मपाल, बुद्ध का रौद्र रूप माना जाता।
हिंदू धर्म में शिव उग्र रूप, महाकाली पति जाना जाता।
उज्जैन के राजा महाकालेश्वर, दूजा ना कोई नृपति।
प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति,मुख्यमंत्री को, रात बिताने की नहीं अनुमति।
प्राचीन काल उज्जैनी नगर में, परम शिव भक्त राजा चन्द्रसेन।
एक गोप बालक श्री कर, राजा को देखा करते पूजन।
राजा की भांति बालक भी, शिव पूजन को हुआ लालायित।
सामग्री जुटा न पाया पूजन की, पत्थर टुकड़ा किया स्थापित।
बड़ी ही श्रद्धा भक्ति से, चंदन पुष्पों से किया पूजन।
पूजा छोड़ा नहीं बीच में, माँ ने कहा, "करो भोजन"।
झल्लाहट मे माता ने, शिव रूपी पत्थर फेंक दिया।
अश्रुपूरित नेत्रों से बालक ने, शिवजी का आह्वान किया।
रोते-रोते बेहोश हो गया, भक्ति देख आशुतोष हुए प्रसन्न।
विशाल स्वर्ण रत्न जङित मंदिर मे, ज्योतिर्लिंग में प्रगटे भगवन।
नेत्र खोले श्री कर ने, प्रसन्न, आनंदित भाव विभोर।
स्तुति करने लगा शिवजी की, माता की खुशी का नहीं ठौर।
प्रगट हो हनुमान वहाँ बोले, "देवताओं में भोले सर्वप्रथम"।
यज्ञ तप से ऋषि-मुनि ना पाये, बालक ने किये शिव दर्शन।
द्वापरयुग कृष्णावतार में, लीला करेंगे गोप वंश नन्द घर भगवान।
गोप बालक श्री कर को, हनुमान जी ने दिया वरदान।
राजा चंद्र सेन,बालक श्री कर, स॔ग करते प्रभु की आराधना।
अंत में शिव धाम चले, करते-करते प्रभु प्रार्थना।
श्री ओम्कारेश्वर
मध्य प्रदेश के खंडवा में ओंकारेश्वर, नर्मदा नदी के द्वीप पर अवस्थित।
ओम आकार का बना है टापू, नदी की धारा उत्तर दक्षिण में विभक्त।
बारह में चौथा ज्योतिर्लिंग, प्राकृतिक शिवलिंग ओंकारेश्वर।
नर्मदा नदी के दक्षिणी तट, विराजत शिव ममलेश्वर।
अलग मंदिर, लिंग अलग, ओमकारेश्वर और ममलेश्वर।
सत्ता स्वरूप में दोनों एक, धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के दाता लोकेश्वर।
संपूर्ण मांधाता टापू, चहूँ ओर जल से घिरा हुआ।
भगवान शिव स्वरूप में पर्वत का, शिवपुरी भी नाम हुआ।
सृष्टि कर्ता विधाता के मुख से, प्रथम ओम शब्द हुआ उच्चारण।
स्वत: बना ओम टापू नर्मदा तट, दूजा ना कोई उदाहरण।
त्रिलोकी भ्रमण कर शम्भु, शिवपुरी में करते विश्राम।
शिव-गौरा खेलते चौसर, रात्रि में करते आराम।
कार्तिक पूर्णिमा को लगता मेला, भक्त चढ़ाते शिव पर चना दाल।
शयन आरती के भव्य दर्शन कर, भक्त हो जाते मालामाल।
राजा मांधाता की कठिन तपस्या से, भोलेनाथ हुए प्रसन्न।
दो वरदान का दिया आशीर्वाद,राजा को दिए दिव्य दर्शन।
पहला वर मांगा राजा ने, प्रभु आप हो टापू पर विराजमान।
दूजा संपूर्ण शिवपुरी क्षेत्र की, मांधाता नाम से हो पहचान।
पांच मंजिला बना है मंदिर, तलघर विराजे श्री ओम्कारेश्वर।
ऊपर में ध्वजाधारी देवता, बीच में महाकालेश्वर, सिद्धनाथ, गुप्तेश्वर।
महाशिवरात्रि पावन अवसर पर, दूर-दूर से आते भक्तजन।
जल चढ़ा पूर्ण करते पूजा, पाप मुक्त होते कर दर्शन।
श्री केदारनाथ
उत्तराखण्ड के चारों धाम में एक, पाँचवा श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिंग।
ग्रीष्म ऋतु में खुलते पट, शीत में ज्योति जलती अखण्ड।
केदारखण्ड हिमालय पर्वत पर, बसा है केदारनाथ धाम।
तीनों ओर हिम पहाड़ियों, चाँदनी छटा बड़ी अभिराम।
श्री केदारनाथ महादेव ज्योतिर्लिंग, केदार हिमालय श्रृंगवर पर स्थित।
पुण्यमती मन्दाकिनी नदी तट, प्राकृतिक वातावरण सुरभित।
आध्यात्मिक तानो-बानो से बुना, ज्योतिर्लिंग धार्मिकता का प्रतीक।
नश्वर और अमर मानव मन की, झाँकी दिखाता अलौकिक।
धरा की कलात्मकता का प्रमाण, केदारेश्वर प्रदर्शित करता।
ऊँचे पहाड़ों पर विराजत, भक्तों को आकर्षित करता।
नर नारायण रूप धर विष्णु , सदाशिव की किये आराधना।
प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग रूप में, अखिलेश्वर की हुई स्थापना।
द्वापर युग में महाभारत रक्त संहार, देख शिव पाँडवों से हुए रुष्ट।
महिष रूपधर अवढरदानी, भूमि मे समावेश कर,हो गए लुप्त।
भाइयों की हत्या से मुक्ति पाने पाँडव, शिव दर्शन करने गये काशी।
हिमालय तक गए पाँचो भाई, दर्शन न दिए अविनाशी।
वृषभ रूप धर केदार क्षेत्र में, दर्शन देने गए अखिलेश ।
बैल समझ भीम, सिर धङ से काटा, प्रकट हो गए महेश।
क्षमादान दिया पाण्डवों को, देखा प्रेम भाव विशेष।
स्वर्ग मार्ग बताये शिवजी, जीवन लीला करो अब शेष।
केदारनाथ शिवलिंग को, पूर्ण करता पशुपतिनाथ शिवलिंग।
धङ रूप में केदारनाथ, शीश रूप में काठमांडू का ज्योतिर्लिंग।
पाँडव राजा जन्मेजय ने, केदारनाथ मंदिर का निर्माण किया।
आदि गुरु शंकराचार्य ने, मंदिर का जीर्णोद्धार किया।
पौ फटते शुभ बेला में, शिवलिंग का होता स्नान।
धूप,दीप,पूजन आरती, घृत लेपकर भक्त करते ध्यान।
साँय काल में शिव जी का, विशेष श्रृँगार किया जाता ।
भव्य रूप, शांत स्वरूप, दर्शन कर मन तृप्ति पाता।
ऊँचे चबूतरे पर बना है मंदिर, चहूँ ओर बना है परिक्रमा मार्ग।
मंदिर के बाहर परिसर में, नंदी दर्शन कर मिटते द्वेष-राग।
केदारनाथ शिव का कूबङ, मद्महेश्वर नाभि है।
तुंगनाथ भुजाएँ प्रभु की, रुद्रनाथ मुखारविंद है।
कल्पेश्वर प्रभु की जटाएँ, दर्शन करने भक्त आते।
पँच केदार के दर्शन कर, शांति जीवन में पाते।
भीमाशंकर
महाराष्ट्र के पुणे जिले में, भीमाशंकर गांव स्थित।
प्रमुख हिंदू मंदिर शिव जी का, नागर शैली में निर्मित।
छठ ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर, महिमा भोले की विशेष।
दर्शन व स्मरण मात्र से, संकट हो जाते सब शेष।
सहयाद्रि पर्वतमाला में, भीमाशंकर मंदिर प्रसिद्ध।
त्रिपुरासर संग युद्ध कर, गंगाधर ने किया राक्षस वध।
युद्ध के परिणाम स्वरुप, भीमा नदी गई सूख।
त्रिलोचन के पसीने ने, कर लिया नदी की ओर रुख।
शिव पुराण कथा अनुसार, कुंभकरण का पुत्र था भीम।
राम से प्रतिशोध लेने, ब्रह्म तपस्या में हुआ लीन ।
भीमा की घोर तपस्या से, ब्रह्मा जी हो गए संतुष्ट।
विजय प्राप्ति का वर देने, प्रकट हुए राक्षस सम्मुख।
वरदान प्राप्त कर भीम, करने लगा अति अत्याचार।
देवी देवताओं में भी आतंक से, मच गया था हाहाकार।
सभी देव हुए एकत्रित, नीलकंठ से की प्रार्थना।
राक्षस से मुक्ति मिलेगी, शिव शंकर ने दी सान्त्वना।
भीमा संग युद्ध किये शिव, जलाकर कर दिया भस्म।
देवी देवता और जन-जन का, भय हुआ पूर्ण रूपेण खत्म।
मानव कल्याण हेतु शंकर, हुए वहाँ विराजमान।
भीमा शंकर ज्योतिर्लिंग रूप में, सिद्ध हो गया वह स्थान।
सच्चे मन से करें प्रार्थना, मनोइच्छा पूर्ण करते भगवन।
भीमेश्वर प्रभु प्रसन्न होते, सावन मास में करें जो दर्शन।
काशी विश्वनाथ
सातवाँ ज्योतिर्लिंग काशी में, गंगा नदी तट पर स्थित ।
विश्वनाथ दर्शन से पहले, भैरव दर्शन करना है सर्वोच्चित।
काशी के कण-कण में, भगवान शिव का है वास।
ब्रह्माण्ड के स्वामी रूप में, वाराणसी में करते निवास।
जब तक पृथ्वी पर है यह नगरी, सृष्टि का न होगा नाश।
काशी विश्वनाथ दर्शन मात्र से, मोक्ष मिलता,बात यह खास।
उत्तर भारत की नगरी काशी, प्रसिद्ध नाम वाराणसी।
विवाह कर आए शिव पार्वती, ज्योतिर्लिंग में विराजे अविनाशी।
सृष्टि कामना हेतु काशी में विष्णु, तप कर शिव को किये प्रसन्न।
सप्त ऋषि अगस्त्य मुनि ने भोले का, जप-तप कर किया स्मरण।
सृष्टि की आदि स्थली काशी का, प्रलय काल में न होता नाश।
उठा रखते काशी को त्रिशूल में, सृष्टि रचना तक रक्षा करते अविनाश।
पापी से पापी प्राणी, काशी में मर मोक्ष पाता।
"तारक मंत्र" सुनाते कान में शिव, भवसागर पर उतर जाता।
श्री विश्वेश्वर के आनंद कानन में, पाँच तीर्थ है प्रधान।
"अविमुक्त क्षेत्र" कहा जाता, मोक्ष मिलता बिन जप- तप- ध्यान।
विश्वनाथ के दर्शन मात्र से, परमधाम के अधिकारी बन जाते।
रोग, शोक, भय, दु:ख, दैन्य, जीवन में कभी नहीं आते।
शादी उपरान्त शिव पार्वती, कैलाश पर कर रहे निवास।
मायके में रहने से पार्वती, मन से रहती उदास।
शादी कर पति गृह रहने का, स्वप्न सजाती हर बाला।
ससुराल घर जाने की प्रतिदिन, पार्वती फेरती माला।
सारी बहने चली गयी, ब्याह रचा पति के साथ।
विनती करने लगी भोले से, अपने घर चलो हे नाथ!
आग्रह देख महागौरी का, शंकर पधारे धाम काशी।
विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में, स्थापित हुए अविनाशी।
त्र्यम्बकेश्वर
महाराष्ट्र के नासिक प्रान्त में, गोदावरी तट पर स्थित।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश का प्रतीक, काले पत्थरों से मंदिर निर्मित।
त्र्यम्बकेश्वर आठवाँ ज्योतिर्लिंग, मनोकामनाएँ पूर्ण करता।
त्रिदेव छोटे शिवलिंग रूप में, भक्तों के मुक्तिदाता।
कालसर्प, शांति त्रिपंडी, नारायण नागबली की पूजा होती संपन्न। अपनी-अपनी मुराद पूरी कर, पूजा करवाने आते भक्तजन।
गौतम ऋषि ने वर मांगा शंकर से, देवी गंगा हो यहाँ प्रकट।
माँ गंगा शर्त रखी हरिहर से, आप विराज करो दूर संकट।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप, शिव जी ने धारण किया।
गंगा नदी बही प्रेम से, गंगा को गोदावरी नाम दिया।
पौराणिक रोचक इतिहास, गौतम अहिल्या से रुष्ट ब्राह्मणी-ब्राह्मण। गणेश रूप धरे निर्बल गाय का, गौतम हाथ में था एक तृण ।
तृण छूते ही गऊ ने प्राण त्यागे, गौ- हत्या पाप लगा ऋषि गौतम को।
भृत्सना हुई बहुत ऋषि की, जाना पड़ा छोड़ आश्रम को।
गौ हत्या पाप से मुक्ति का, मार्ग बताओ हे ब्राह्मण!
गंगा को धरा पर लाने का, हुक्म सुनाएँ ऋषिगण।
भगवान भोले की किये आराधना, पति-पत्नी हो पूर्ण तल्लीन।
भक्ति की शक्ति से भोले, दोनों पर हुए अति प्रसन्न।
बिना अपराध अपराधी होने का, छलपूर्वक लगा था दाग।
ब्राह्मणों की तपस्या से गणेश ने, गौ रूपधर किया जीवन त्याग।
बोले शिव दे दर्शन गौतम को, हे निष्पाप!मांगो वरदान।
गंगा संग त्र्यम्बक ज्योतिर्लिंग रूप मे, आप विराजो भगवान।
गंगा को धरा पर लाने का, देवगणों ने किया अनुमोदन।
गोदावरी रूप में हो प्रवाहित गंगा, पापों का करती निरावरण।
बैद्यनाथ धाम
झारखंड के देवघर में स्थित, नौवाँ ज्योर्तिलिंग बैद्यनाथ धाम।
शिव भोले का विश्व प्रसिद्ध मंदिर, शिव शक्ति साथ में विराजमान।
माता सती का हृदय गिरा, हृदय पीठ रूप में शक्तिपीठ जाना जाता।
रावण से जुड़ाव शंकर का, रावणेश्वर बैद्यनाथ भी कहलाता।
शिवजी को करने प्रसन्न दशानन, काटकर चढाये नौ शीश।
दसवें सिर की बली देख, प्रकटे शिव देने आशीष।
वरदान रूप में शिव को रावण, लंका में करना चाहता स्थापित।
देवों के आग्रह पर माँ गंगा, रावण शरीर में हुई प्रवाहित।
शिवलिंग पहुंच ना पाए लंका, चरवाहा रूपधर विष्णु हुए प्रकट।
लघुशंका रोक न सका रावण,मन में रावण के धर्म संकट ।
धरा पर न धरे शिवलिंग को,चरवाहे के हाथों सौंप दिया।
भार उठा न सका चरवाहा,जमीन पर शिवलिंग रख दिया ।
हाथ पखारण कारण रावण,धरा दबा अंगूठे से गंगा लाया।
शिव उठाने की कोशिश में असफल, आवेश में शिवलिंग धरती में दबाया।
बैद्यनाथ धाम में ज्योतिर्लिंग, थोड़ा सा जमीन से बाहर दिखता।
रावण अँगूठे का निशान छोड़, निरूपाय लंका चलता।
सावन मास में काँवर ले, जला भिषेक करने आते भक्तजन।
प्रसिद्ध श्रावणी मेला लगता, देवघर का धार्मिक आयोजन।
दशहरा मेला देवघर में न होता, शिवजी का परम भक्त रावण।
सम्पूर्ण भारत त्यौहार मनाता, जला के पुतला रावण कुंभकरण।
गोमती नदी बहती धाम में, तीर्थों का जल चढ़ाने का है विधान।
दूर-दूर से जल लाते भक्तजन, खुश होते भक्त और भगवान।
श्री नागेश्वर
गुजरात के द्वारका धाम में, दसवाँ ज्योतिर्लिंग नागेश्वर।
रूद्र संहिता ने माना प्रथम, दारूका बने नागेश शिव मंदिर ।
नागों के भगवान नागेश्वर, शिव गले में लिपटा रहता नाग।
भक्तों का कुण्डली दोष मिट जाता, अर्पित करें धातु निर्मित नागिन नाग।
दारू का नाम की राक्षस कन्या ने, तपस्या से पार्वती को किया प्रसन्न। दारूकावन की दैवीय औषधियाँ ले, करना चाहती वह सत्कर्म।
पर माँ का वरदान प्राप्त कर, करने लगी वन में उत्पात।
छीन लिया देवों से दारूकावन, परिस्थितियाँ बन गयी आपात।
परम शिव भक्त सुप्रिय को, राक्षसी ने बनाया बन्दी।
शिव तपस्या में तल्लीन भक्त पर, लग ना सकी कोई पाबन्दी।
सुप्रिय की मन की पुकार सुन, एक बिल से प्रभु हुवे शिव प्रकट।
दिव्य नागेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप में, शिवलिंग की पूजा हुई विधिवत।
श्री रामेश्वर
बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर, बीच बना है धाम रामेश्वरम्।
चारों धाम में धाम एक, तमिलनाडु का ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम्।
भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में, ग्यारहवाँ शिवलिंग रामेश्वरम्।
माता सीता ने बनाया शिवलिंग,
राम द्वारा पूजित रामेश्वरम्।
लंकापति रावण से युद्ध में, विजय पाने की राम को कामना।
रेत का शिवलिंग बनाकर, शिवजी की किए स्थापना।
पँडित रावण को मारने से, लगा राम को ब्रह्म हत्या का पाप।
शिवपूजन से मिलेगी मुक्ति, ऋषि मुनियों ने मिटाया सन्ताप।
शिवलिंग लाने राम जी ने, बजरंगी को भेजा कैलाश।
शुभ मुहूर्त निकल न जाए, जानकी ने शिवलिंग दी तराश।
भगवान राम द्वारा पूजित, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग बन गया धाम।
हनुमान जो लाये शिवलिंग, "हनुमदीश्वर" रख दिया नाम ।
चौबीस कूएँ हैं मंदिर भीतर, राम जी ने खोदे,चला के बाण।
पावन तीर्थ समान पूजित, पाप कटते करें स्नान।
रामेश्वर मंदिर का गलियारा, एक सौ आठ शिवलिंग से सज्जित।
नक्काशी बड़ी खूबसूरत, श्रीगणेश भगवान जहाँ स्थापित।
राम जी द्वारा पूजे जाने से, चारों धाम में एक धाम रामेश्वरम्।
ज्योति रूप में विराजे आशुतोष, सेतुबंध श्री रामेश्वरम्।
श्री घुश्मेश्वर
महाराष्ट्र की बेरूलठ गाँव में स्थित, घृष्णेश्वर या घुसृणेश्वर ।
घुश्मा की भक्ति का प्रतीक, नाम हो गया घुश्मेश्वर ।
देवगिरी पर्वत निकट, रहता था सुधर्मा ब्राह्मण ।
प्रेम से रहता पत्नी संग, चाहता संतान खेले प्राँगण।
पुत्र प्राप्ति हेतु सुदेहा ने, बहन से कर दिया पति का विवाह ।
नाम घुश्मा शिव पुजारिन, प्रेम से तीनों कर रहे निर्वाह।
एक सौ एक पार्थिव शिवलिंग, बनाती घुश्मा प्रतिदिन।
बड़ी विधि से पूजन कर, सरोवर में करती विसर्जन।
शिव कृपा से सुधर्मा घर, पुत्र रत्न का हुआ जन्म।
पुत्र मार फेंका तालाब में सुदेहा, सौतियाडाह से हुई जलन।
घुश्मा बिन मातम मनाये, शिवपूजन में हुई संलग्न।
शिवालय से निकला बालक, पकड़ा माता के चरण।
घुश्मा की निष्ठा से प्रसन्न, महेश ने दिए दर्शन।
सुदेहा के लिए माफी मांगी, क्षमा करो हे भगवन!
जगकल्याण हेतु प्रभु,आप हो यहाँ विराजमान।
ज्योति रूप धर प्रकटे हरिहर, घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम।
मंदिर निकट है सरोवर, शिवालय भी कहलाता।
मनोकामना पूर्ण हो जाती, दर्शन करने भक्त जो आता।
धरा पर भगवान शिव के, असंख्य स्थापित है शिवलिंग।
जहाँ-जहाँ प्रकटे ज्योति रूप में, शिवलिंग बन गया ज्योतिर्लिंग।