याद है आज भी वह खूबसूरत लम्हें, हम थे नन्हे नन्हे।
ना फिकर ना कोई गम, मस्ती में झूमते हम।
जो भाया सो खाया ,प्रेम से पचाया।
पढ़ने लिखने में व्यस्त, खेलने कूदने में मस्त ।
ना कोई जिम्मेदारी, ना लोक लाज की समझदारी ।
ना अपने पराए का ज्ञान, बालक थे हम नादान।
युवा पीढ़ी की सीढी पर रखा कदम, कभी हँसनुमा तबीयत, कभी मिलते गम ।
कुछ लम्हें ऐसे, भूले हम कैसे?
प्यार का पहला कदम, कैसे बढाएं हम।
ना फोन ना कोई साधन ,ना फैशन का प्रसाधन ।
जब थी मेरी सगाई, मेरे पति से मिले मेरे भाई ।
मेरी आँखें ताक रही थी ,खिड़की से झाँक रही थी ।
पर हुआ न इनसे मिलन, याद कर हँसते हैं हम ।
इनका भी था यही हाल, मिले जब पहला था सवाल ।
क्यों तुम सामने ना आई? तेरी मेरी थी सगाई ।
याद आते हैं वह लम्हें, आज गूंजते हैं जैसे नगमें ।
अब बुढ़ापा आ गया प्यारा, पूरे जीवन से न्यारा ।
हर लम्हा याद आता है, सपने सा गुजर जाता है।।