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मिथिला नगरी में रहने वाली मैं,

पिंगला वेश्या,
इन्तजार करती हूँ
हर शाम।

धनवान ग्राहक की झोली से,
धन लुटवाना मेरा काम।

प्यार की लुटिया,जल सब उसका,
मैं लोटपोट नहाऊँगी।

गंगा-जमुना-सरस्वती मिलन सा,
तन- मन-धन लुटवाऊँगी।

मेरा क्या है?कुछ नहीं,
यह तन बिका हुआ है यार।

एक बार बिका या बार बार,
धन का लग गया अम्बार।

ऐसा नशा,ऐसा चस्का चढ़ गया,

हर शाम से रात तक,
सज धज होती तैयार।

करती धनवान ग्राहक का,
बेसब्री से इन्तजार।

प्यार क्या है?मुझे नहीं पता।

गृहस्थी का फर्ज,परिवार का मर्ज,
मैं नहीं जानती।

ना चाँद ना तारों संग,
रातें मैं काटती।

हर रात नए चाँद सितारे,
मेरी काया को चाहने वाले।

माया समेट हर सुबह,
दुनिया से मुँह छुपानेवाले।

चले जाते छोङ कर,
मैं भी लौट आती।

फिर वही अपनी,
तनहाँइयों का बोझ उठाती।

फिर वही काया,वही माया,
वही शाम,वही इन्तजार।

नये ग्राहक की चाहत मे,
मन तडपता हर बार।

क्या यही मेरा जीवन है।

रोज की चाहत से,
मन नहीं भरता।

नए अफसाने,नए लोग,
परिवार मेरा नहीं बसता।

एक दिन अचानक !

धनवान मेहमान के इन्तजार में,
शाम से हो गई रात्रि।

हृदय में नवचेतना की,
होने लगी जागृति।

जीवन भर की दिनचर्या की,
होने लगी पुनरावृत्ति।

सांसारिकता जो मैंने चुनी,
कैसे पाऊँ उससे निवृत्ति।

करवटें बदल रही मैं,
निद्रा आगोश में जाना चाहूँ।

पर बिन धनवान ग्राहक के,
चैन मैं कैसे पाऊँ?

अचानक हृदय में हूक जागी,
मैं दौड़ी दौड़ी मन्दिर को भागी।

पर मन्दिर में कहाँ मेरा डेरा था?
बिस्तर ही रैन बसेरा था।

पर न जाने क्यों?

आज इन्तजार की घड़ियों संग।
मैं ने बदलना चाहा जीने का ढंग।

धनवान पुरुष की चाहत से अच्छा,
प्रभु की दासी बन जाऊँ।

जीवन सँवर जाएगा मेरा,
आशाओं को मिटा पाऊँ।

जीवन जो गवाँया मैंने,
पुन: लौट नहीं आ सकता।

हरि की इच्छा के बिन,
भाग्य उदय नही हो सकता।

यही सोच कर मैं,
कर रही "हृदय- मन्थन"।

मन में बसा लूँ अपने,
यशोदा के लाल नंद नंदन।

सेज पर बिछाऊँ सुगन्धित फूल,
दुनियादारी सब जाऊँ भूल।

इसी सोच से आज,
मन मेरा खिल गया।

श्याम सलोना मनमोहक चेहरा,
हृदय कमल को मिल गया।

प्रेम सुधा रस अमृतवेला में,
राम नाम की शुभ वेला में।

प्रभु ध्यान में हो मगन,
हरि दर्शन की लगी लगन।

आज नया सवेरा नई उमंग,
तन्द्रा टूटी ले नई तरंग।

हर ओर नया उजियाला,
नाच रहा मन हो मतवाला

संसार से मन भर गया मेरा,
संसार बनाने वाले में गया रम।

नकली धन की छूटी मोह माया,
पाया जो मैने राम रतन धन।

अब ना किसी का इन्तज़ार,
ना धन की मोह माया।

हृदय परिवर्तन से,
खिल उठी मेरी काया।

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