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जीवन नाटिका की वाटिका सजी है, रंग बिरंगे फूलों से।
कभी कोई भौंरा आ जाता, पीने पराग कलियों से।
कभी तितलियाँ मँडराती, रंग नये दर्शाती है।
कभी टिड्डों के झुण्ड से, वाटिका उजड़ जाती है।
घनघोर बादलों की गर्जना, मन को बहुत लुभाती है।
काली घटा बिच बिजली कौंधना, चमक नयी दे जाती है।
रिमझिम रिमझिम बारिश की बून्दें, मन को मोहे जाती है।
बादल अगर फट जाए कहीं, जीवन नैया डुबाती है।
कल-कल करता झरनों का पानी, नदियों से जा मिलता है।
देख प्रकृति का दृश्य मनोहर, मन खुशी से खिलता है।
हिमालय की छटा अनुपम, चाँदनी जब छिटकती है।
ऐसे मनोरम मंज़र की झलक, क्या वातानुकूलित में मिलती है ?
शारीरिक व्यायाम, खेलों की स्फूर्ति, सिमट गई मोबाइल में।
चौपालों की चहल-कदमी, रह गई बन्द द्वारों में।
एक दूजे से मन का नाता, संदेशों से जुड़ता है।
ज्ञान बाँटना सरल हो गया, कोई किसी की न सुनता है।
पौधों में पानी,जीवन में प्यार, उतना दो जितनी जरूरत है।
अपनी मस्ती में मस्त रहो, बन समता की मूरत है।
वक्त से पहले भाग्य से ज्याद, कहाँ किसी को मिलता है।
जीवन यात्रा में होता सफल, वक्त के साथ जो चलता है।
कर्म क्षेत्र की क्रीड़ा में, द्रुत गति के अश्व दौडाते जाओ।
जमाना साथ देगा जब तक, काम सबके आते जाओ।
जो संकट में काम आए, वही सच्चा साथी है।
कृष्ण गज पुकार सुन आये, नहीं सोचा गज हाथी है।
दुनियाँ का दावा कैसे करें, सब मतलब का नाता है।
हथेली से जो हाथ मिलाए, वही दिल से जुड़ जाता है।
सच्चा मित्र मुश्किल से मिलता, खोए उसे कभी ना हम।
कद्र करें अंतरंग मित्र की, सहेजता जो हमारे गम।
दुनियाँ के मेले में न जाने, कौन? कब? किससे? बिछड़ जाए।
आज यहाँ कल न जाने कहाँ, किस जहाँ में रोटी खाए।
समय फिसल जाता मुट्ठी से, हाथ नहीं फिर आता है।
टूट जाता प्यार का रिश्ता, गाँठ लिये जुड़ पाता है।
माना अँधेरा घना जीवन में, ज्ञान दीपक जलाना मना नहीं है।
खुशियों के पल का स्वागत करें, ठुकराना उन्हें ठीक नहीं है।
हालाँकि दिल के कोने में, दर्द अनेकों छिपाए हैं।
क्या कहूँ? कैसे बताऊँ? समझ मुझे ना आए हैं।

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