हर कविता आखिरी है
यह सोच कागज कलम उठा रखती हूं
पर मेरी कलम कागज का साथ नहीं छोड़ती
फिर सुबह से लिखने मैं मजबूर होती हूं
कभी-कभी भावों का मेला इकट्ठा हो जाता है
कागज पर वर्षा ना हो कलम की
मन सुस्त हुआ जाता है
फिर सोचती हूं क्यों मैं अपने तुच्छ आराम खातिर अपनी भावनाओं की आंधी का मुख मोडती हूं
अगर इससे छोड़ा तो कहीं दूसरों की संधि विच्छेद में जा गिरती हूं
कागज कलम को धन्यवाद देती हूं
मेरे भावों को मैं अभिव्यक्त करती हूं
कभी कविता, कभी कहानी,
कभी उपन्यास लिखती हूं
मैं अपने मन की व्यथा कागज पर कलम से लिखती हूं