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संयुक्त परिवार रूपी घनत्व की इकाई नापना,बड़ा मुश्किल था काम ।
प्रेम की परिभाषा पढ़ना,बड़ा सरल, बड़ा सरस अभिराम।
छोटे-बड़े चचेरे ममेरे,मिलकर बाँटना सीख जाते ।
त्याग भावना पल्लवित होती,प्रेम रूपी अँकुर फूटते जाते।
बड़ों का सम्मान करना,औपचारिकता नहीं होती थी।
मन से आदर करते सबका, प्रेम की गंगा बहती थी।
अहा!घर हरा भरा रहता,त्योहारों में मिठाई बनाई जाती।
दादी,ताई,माँ,चाची के हाथों की,सबके मन को लुभाती।
परिवार से अगर कोई बाहर जाता, बच्चों को समझ नहीं आता।
मां-बाप,ताऊ-चाचा के प्यार में,भेद कोई नहीं पाता।
ना मालूम कैसे और कब??
ना मालूम कैसे?अकेले रहने की प्रथा का जन्म हो गया।
पाश्चात्य सभ्यता का विकास,हमारे देश में हो गया।
एक दूसरे से काम लेने में,शर्मिंदगी समझी जाने लगी।
ना खून का रिश्ता!ना प्रेम का रिश्ता! रिश्तो में कमी आने लगी।
पूरा मौहल्ला जहाँ अपना होता,अब पड़ोसी कौन?नहीं पता!
हद हो जाती कभी-कभी,पड़ोसी मरने का,दूसरों से चलता पता।
तब समझ में आता,अच्छा वह मेरा पड़ोसी था।
मैंने तो कभी एक झलक, उसे नहीं देखा था।
ताज्जुब है राम की पावन धरती पर, ऐसी सन्तान कैसे हो गई?
पूरा ब्रज मण्डल कृष्ण का,घर-घर जा माखन खाते,
मित्र सुदामा की गेंद लाने,यमुना में कान्हा कूद जाते।
पाण्डवों की रक्षा हेतु,महाभारत प्रभु रचवाते।
भक्त की इच्छा के खातिर, रणछोड़राय प्रभु बन जाते।
सती अनुसुइया ने सतीत्व रक्षा हेतु, त्रिदेवों को बाल स्वरूप दिया।
दानवीर कर्ण ने वचनबद्ध हो,कवच,कुण्डल दान किया।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने,राज-पाट, रानी का त्याग किया।
राजा शिवि ने कबूतर हेतु,अपना माँस काट दिया।
कहाँ लुप्त हो गई वो संस्कृति,कहाँ चले गए वह लोग।
जो मन में प्रेम शान्ति भरदे, ईर्ष्या का मिट जाए रोग।
अपने सतीत्व की रक्षा हेतु,जहाँ जौहर करती रानियाँ।
अपने पुत्र का,राज पुत्र हेतु,बलिदान करती दासियाँ।
ऐसी प्रभावशाली संस्कृति को,पाश्चात्य सभ्यता ने घेर लिया।
प्रेम विवाह,तलाक प्रथा ने,घर-घर में कदम रख दिया।
हाय तौबा मची है,धन अर्जित करने की,पति पत्नी भूल गए प्यार।
संसार आगे नहीं बढ़ाते,भूल गए पूर्वजों के संस्कार।
हे प्रभु! प्रेम की चला पुरवाई,हर हृदय में जग जाये प्यार।
मात-पिता वृद्धाश्रम न जाये,बच्चे निभाये कर्तव्य-अधिकार।