बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व, दुर्गोत्सव कहलाता।
चैत्र और आश्विन मास में नवरात्रि, हर्षोल्लास से मनाया जाता।
महिषासुर ने घोर तपस्या से,ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।
जीवन में मरूँ ना किसी से,अमरता का वर माँग लिया।
संसार में जन्म लेने वाले को,एक न एक दिन मरना होगा।
अमर होना नहीं है संभव,दूजा वर माँगना होगा।
बोला मूर्ख !अज्ञानी राक्षस, प्रभु दे दो एक वरदान।
स्त्री के हाथों मँरू, मुझे ऐसा वर दो कृपानिधान।
वर की शक्ति थी अनोखी,महिषासुर समझ नहीं पाया।
वरदान पाकर बड़े गर्व से,स्वर्ग में दौड़ा आया।
अधिकार हीन कर देवों को,स्वर्ग से निष्कासित किया।
इन्द्र सहित सब देव मिल, शिव,विष्णु का पूजन किया।
विष्णु और शिव की शरण में,विफल देव आए हो एकत्रित।
करतूत राक्षस की सुनकर,दोनों देव हुए बड़े क्रोधित।
क्रोध से जो अंश निकला,हर देव में स्थापित हुआ।
नव देवों से नौ शक्ति मिल,माँ दुर्गा का जन्म हुआ।
सनातन धर्म में कहलाई नवदुर्गा,जग जननी जगदम्बा आदिशक्ति।
अलग-अलग अस्त्र शस्त्र और वाहन, रूप एक,पाप विनाशिनी भगवती।
महिषासुर का वध कर माँ का,नाम हुआ महिषासुरमर्दिनी।
जग की रक्षा करती मैया,भक्ति,मुक्ति प्रदायिनी
नवरात्रि में नौ दिन,माता की होती स्थापना।
भक्त जन धूमधाम से करते,माँ पराशक्ति की आराधना।
दक्ष यज्ञ में निरादर देख शिवजी का, सती ने देह त्याग दिया।
दु:ख और गुस्से की ज्वाला से, शिवजी ने ध्वस्त यज्ञ किया।
शिवजी को पाने पति रूप में,हिमालय घर,सती ने जन्म लिया। काशी नगरी में वास माँ का,वृषभ वाहन धारण किया।
प्रथम प्रकृति की प्रतीक पार्वती माँ, शैलपुत्री रूप में पूजन किया गया। दाएँ हाथ में त्रिशूल धारे,बाएँ में कमल धारण किया।
दूध,मिष्ठान भोग लगाती,श्वेत पुष्प, लाल सिन्दूर धारण करती।
भक्तों की दरिद्रता दूर कर,भव की बाधा हरती।
हिमालय मैंना की पुत्री पार्वती माँ का, तन मन से जो भक्त पूजा करता। जीवन में होता सफल,चट्टान सा मजबूत बनता।
प्रथम शैलपुत्री माँ का मन्त्र-
या देवी सर्वभूतेषु,प्रकृति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै,नमस्तस्यै नमो नमः।
द्वितीय ब्रह्मा की अनुचर बन, कहलाई ब्रह्मचारिणी।
ब्रह्म रूप,चेतन स्वरूपा,परम ब्रह्म ब्रह्मचारिणी।
नारद की बात सुन पार्वती ने,शिव हो पति, घोर तपस्या की।
ब्रह्म ज्ञान प्राप्त कर माता,अर्धांगिनी बनी शिव की।
एक हाथ कमण्डल धारे,दूसरे से जपती माला।
मिश्री पंचामृत भोग लगती,गुङहल, कमल की पहने माला।
ना आदि न अन्त जिसका,अनन्त शक्तियों का देती वरदान।
भक्त विचलित ना हो संघर्ष से,दीर्घायु, सौभाग्य करती प्रदान।
सिद्धांत नियमों पर चलने से,जीवन में मिलती सफलता।
अनुशासन का पालन करने से,परा शक्तियाँ देती माता।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी माँ का मंत्र-
या देवी सर्वभूतेषु,सृष्टि रूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो: नमः।
तृतीय दिवस माँ चन्द्रघण्टा,शीश धारे घण्टाकार चन्द्रमाँ।
दस करों से सुशोभित मैया,रत्न आभूषण से सजी प्रतिमा।
श्वेत पुष्प माला अति शोभित,बाघ माँ का है वाहन,
कमल,कमण्डल,त्रिशूल,तलवार,धनुष बाण,गदा करती धारण।
दूध व दूध से निर्मित व्यंजन,मैया भोग लगती है।
एक हाथ हृदय पर रखती,शान्ति के भाव दर्शाती है।
एक हाथ से आशीर्वाद देती,भक्त अभय मुद्रा पाते।
माता का घण्टा सुनकर,असुर भय से भाग जाते।
संसारिक दु:ख-दरिद्रता हरती,मन नियन्त्रित करती माँ,
मन में संतुष्टि के भावों से,भक्तों को देती प्रसन्नता।
तृतीय माँ चन्द्रघण्टा का मन्त्र-
ऊँ देवी चन्द्रघण्टाय नमः।
चतुर्थ रूप में माँ की मुस्कान से, ब्रह्माण्ड की हुई रचना।
ब्रह्माण्ड में छाया अन्धेरा,दिव्य किरणों की माँ ने की संरचना।
नाम पाया माँ ने कुष्मांडा,अष्टभुजा धारण करती।
कमल,कमण्डल,चक्र,गदा,अमृत कलश,धनुष बाण कर में रखती।
आठवें हाथ में माला जपकर,सर्व सिद्धि,नव निधि प्रदान करती।
अति प्रिय माँ को कुष्मांडा (कद्दू), जिसका माँ भोग धरती।
सूर्य लोक की वासिनी माता,अँधेरा हटा प्रकाश लाती ।
मालपुआ का भोग लगा,पीलापद्म, गेंदा पुष्प धारण करती।
बौद्धिक विकास करती भक्तों का, जीवन सफल बना देती।
सुख शान्ति की राह दिखाती,भय से मुक्त कर देती माँ।
चतुर्थ माँ कुष्मांडा का मंत्र -
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रूपेण संस्थिता,
,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै,नमस्तस्यै नमो:नमः।
नवरात्रि के पंचम दिवस पर, स्कन्दमाता का पूजन होता ।
ब्रह्मांड व्याप्त शिव तत्व का मिलन, जब देवी शक्ति संग होता।
जन्म होता स्कन्द (कार्तिकेय) का,माँ स्कन्द माता कहलाती।
श्वेत वर्ण से पूरित माता,चार भुजा धारण करती।
षङानन बाल रूप स्कन्द को,दाहिनी भुजा में पकड़ती माँ।
बाई भुजा से भक्तजनों को,शुभ आशीर्वाद देती माँ।
पद्म नीचे की दोनो भुजा में, पद्मासिनी कहलाती माँ।
सिंह वाहन,ज्ञान की प्रतीक,शस्त्र धारण ना करती माँ।
तारकासुर का वध करने,कार्तिकेय को प्रशिक्षित करती माँ।
शिव शक्ति सुत राक्षस वध करता,अति प्रसन्नता पाती माँ।
मृत्यु लोक में भक्तजन माँ की,पूजा कर सुख शान्ति पाते।
कदली का भोग अर्पण कर,आशीर्वाद माँ का पाते।
पँचम माँ स्कन्दमाता का मंत्र -
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।
षष्ठ दिवस माँ कात्यायनी,ऋषि कात्यायन की तनया।
पुत्री रूप में जन्म हो दुर्गा का,ऋषि ने की घोर तपस्या।
प्रसन्न हो तपस्या से ,ऋषि घर माँ का जन्म हुआ।
कात्यायन ऋषि की पुत्री का, कात्यायनी नाम हुआ।
नकारात्मक ऊर्जा का नाश कर, सकारात्मक ऊर्जा भरती ।
खूँखार सिंह वाहन माँ का,महिषासुर का वध करती।
चतुर्भुज रूप माता का,रत्न आभूषणों से अलंकृत माँ।
गुप्त रहस्यों में रख दिव्यता,शुद्धता की प्रतीक देवी माँ।
ऊपर दाँई भुजा अभय मुद्रा में,नीचे वर मुद्रा में रहती।
ऊपर बाँई भुजा में चँद्रहास तलवार, पंकज पुष्प पकड़े रहती।
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की दाता,पूजा करें मन से,धर एकाग्रता।
उपासना कर शहद भोग लगायें,खुशहाल यौवन व देती माँ संपन्नता।
कात्यायनी की पूजा से,शक्ति का संचार होता।
अविवाहित बालाओं को, सुयोग्य वर प्राप्त होता।
कालिन्दी तट पर गोपियों ने, कात्यायनी माँ का पूजन किया।
पति रूप में मिले श्री कृष्णा, मनोकामना माँ ने पूर्ण किया।
अमोघ वरदायिनी माँ, बैद्यनाथ धाम में प्रकट हुई।
स्वर्ण सम चमकते माँ,दिव्य रूप में पूजी गई।
रोग,शोक,भय,नाश कर,खुशियाली जीवन में लाती माँ।
पूजा करते बालक-बाला,लाल रंग से सुशोभित माँ।
माँ कात्यायनी का मन्त्र-
या देवी सर्वभूतेषु,स्मृति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै,नमस्तस्यै नमो नमः।
काल पर विजय पाने वाली,माँ काल रात्रि कहलाती।
भय से मुक्त करती माता,सप्तम दिवस पूजी जाती।
तेजस्वी नेत्र मैया के,वर्ण घोर अन्धकार सा काला।
बाल बिखरे रहती मैया,विद्युत सी पहने गले माला।
उग्र रूप भयावह माँ का,भक्तों को शुभता प्रदान करती।
ऊपरी भाग में रक्तिम वस्त्र,नीचे बाघ वस्त्र धारण करती।
वाहन माँ का है गर्दभ, बाधाओं को हरती है।
भक्तों के प्रतिकूल ग्रहों का,दुष्प्रभाव दूर करती है।
चार हाथ है मैया के,दो अभय वर मुद्रा में रहते।
शेष नीचे के दो हाथ,चंद्रहास खड़्ग हसिया रखते।
शुंभ-निशुंभ का विनाश कर,रक्तबीज को भस्म करती।
आरती से अति प्रसन्न हो माता,भूत प्रेत,भव बाधा हरती।
तंत्र-मंत्र सिद्धि प्राप्ति हेतु,कालरात्रि की करें उपासना।
अलौकिक शक्तियों की दाता, दूर करती दुर्भावना।
दिन-रात मेहनत जो करते,माँ जीवन में करती उन्हें सफल।
उच्च शिखर को वह छू जाते,कभी नहीं होते विफल।
माँ कालरात्रि का मंत्र-
ओं एँ हीं कलिं चामुण्डाये विच्चे।
अष्टम स्वरूप में महागौरी,सुहागिनों को सुहाग प्रदान करती।
नारियल का भोग लगाती,चतुर्भुज रूप धारण करती।
कठोर तपस्या की माँ गौरी ने,देह क्षीण वर्ण श्याम हुआ।
अर्धांगिनी बनाया शिव ने,गंगाजल धारा स्नान से गौर वर्ण हुआ।
श्वेत वस्त्र,श्वेत आभूषण,श्वेताम्बरा माँ कहलाती।
श्वेत वृषभ पर हो सवार,वृषारूढा भी कहलाती।
आठ वर्ष उम्र गौरी की,माँ है बड़ी करुणामयी।
शान्त,मृदुल स्वभाव है माँ का,सुख समृद्धि देती स्नेहमयी।
नौ साल की कन्याओं के पूजन से, मनोवांछित फल देती माँ।
सच्चे मन से करें पूजन अर्चन,ग्रह दोष दूर करती माँ।
मां गौरी की आराधना से,दाम्पत्य जीवन सफल होता।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से, उज्जवल मानव चरित्र होता।
पाप कर्मों के काले आवरण को दूर कर,आत्मा को देती स्वच्छता।
चरित्र पवित्रता की प्रतीक देवी,हृदय मंथन कर देती सफलता।
माँ महागौरी का मंत्र -
सर्व मंगल मांगल्ये,शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रम्बक्ये गौरी,नारायणी नमोस्तुते।
ब्रह्माण्ड में छाया अँधेरा,दिव्य नारी रूप में प्रगटि सिद्धिदात्री।
जन्म दिया ब्रह्मा,विष्णु,महेश को ,कहलायी माँ जगदात्री।
नवरात्रि महानवमी को,पूजी जाती सिद्धिदात्री
सिद्धि प्रदान करती देवीमाँ, नाम है सिद्धिदात्री।
अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त की शिव जी ने, सिद्धि दी माँ सिद्धिदात्री।
अर्धनारीश्वर शिव स्वरूप में,आधा अंग सिद्धिदात्री।
शंख,चक्र,गदा,पद्म,चतुर्भुज में धारण करती।
हलवा,चना,पूरी और खीर,सिद्धिदात्री माँ भोग धरती।
रोग,शोक,भय मिटाती,उपासना से मिलती शक्ति।
नौ दिन व्रत करें नवरात्रि में,शत्रु से मिलती मुक्ति।
नवदुर्गा की पूजा अर्चना कर,नव कन्या का करें पूजन।
दुर्गा रूप में कन्या स्वरूपा, माँ होती भक्तों पर अति प्रसन्न।
माँ सिद्धिदात्री का मंत्र -
या देवी सर्वभूतेषु,लक्ष्मी रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।
महिषासुर का वध कर माँ का,नाम हुआ महिषासुर मर्दिनी।
जग की रक्षा करती माता,भक्ति मुक्ति प्रदायिनी।