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माँ की तुलना क्यों करूँ?
मैं जमाने से, जिस का दर्जा ऊँचा है हर आशियाने 
से ।
मां नि:स्वार्थ, निश्चल, ममता की मूरत है ।
ईश्वर को देखा है किसने , माँ में रब की सूरत है ।
अपने आँचल की छाया के छाते में,बच्चों को छुपाती माँ !
दु:ख-दर्द असहनीय हो अगर, पल्लू से आँसू पूछती माँ!
खून की बूंद के एक एक कतरे से, नवजीवन सँजोती माँ!
वेदना विदित है प्रसव की ,सहनशक्ति की धरोहर माँ!
खुद के दर्द जाहिर नहीं करती, औलाद को सुख देती माँ!
भूखी रहकर भी है हँसती, सन्तान का पेट भरती माँ!
उच्च शिक्षा स्तर पाने को, विदेश भेजती बच्चों को माँ!
कभी-कभी ठगी वह जाती, भूल जाते बच्चे जब माँ!
कभी कोई पगली कह जाता, कोई कहता बुद्धि नहीं है।
यह व्याख्या है हर माँ की, संतति के आगे कोई नहीं है।।

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