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माँ ममतामयी,नि:स्वार्थ,निश्छल, आत्मीयता की मूरत है।
ईश्वर को देखा है किसने, माँ में प्रभु की सूरत है।
अपने आँचल की छाय का छाता, खुला हमेशा रखती है।
दु:ख-दर्द असहनीय चाहे जितना, पल्लू सेआँसू पोंछती है।
खून की बूंद के एक एक कतरे से, नवजीवन संजोती है।
वेदना विदित प्रसव पीड़ा को, ममता की आड़ में सहती है।
सहनशक्ति की सँजीवनी से,सारा कष्ट हरती है ।
भूखी रहकर भी ममतामयी, संतान का पेट भरती है।
माँ की ममता अक्षरक्ष सत्य है, पिता भी किसी से कम नहीं ।
दिन-रात मेहनत मजदूरी कर, निज पास रखते कुछ नहीं।
मधुमक्खी के छत्ते जैसे, मधु दे देते सन्तान को ।
अपनी इच्छाओं को त्याग देते,कैसे भूले ऐसे भगवान को।
धरा धरणी है हमारी, हर जरूरत पूरी करती है ।
सहन शक्ति की देवी पृथ्वी,हर भार हमारा सहती है।
देवी सी दातार धात्री, बदले में कुछ नहीं लेती है ।
सुधामयी अमृत बरसाती, निवास सभी को देती है।
प्रकृति परिवर्तित परिस्थिति पाती, ममता मानव पर लुटाती।
हर ऋतु में नए फल उगाती, और सुगंधित फूल खिलाती वृक्ष जहाँ छाया देते, जड़ी बूटियाँ दर्द हर लेते।
करुणामयी क्षुधा बुझाती, अनगिणत अन्न उपजाती।
सर्वशक्तिमान प्रभु की, लीला अपरम्पार है ।
जन्म से पहले ही शिशु हेतु ,भरता दूध की धार है।
पशु-पक्षी, मानव और दानव, सब उसकी संतान हैं ।
भेदभाव वो नहीं जानते, दया के सिंधु भगवान हैं।
माँ की ममता, धरा की क्षमता, ईश्वर की समता ना भूलें हम।
प्रकृति का नजारा, सबसे प्यारा, इसे नष्ट करें ना हम ।
जन्मभूमि स्वर्ग से ऊपर ,ममता उस पर लुटाए हम।
जान की परवा किए बिना, देश सेवा में जुट जाएं हम।

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