जीवन में आगे बढ़ने की,
एक पगडंडी बना रही हूँ।
सुबह-शाम,दिन-रात मैं,
उस पर चलती जा रही हूँ।
नित नए नए रिश्ते बना रही हूँ
मैं आगे बढ़ती जा रही हूँ।
कभी धूप कभी छाँव का दामन,
कभी काँटे,कभी फूल मनभावन,
कभी शीतल समीर के झोंके, कभी-कभी मिल जाते धोखे।
हर लम्हों से सीखती जा रही हूँ
मैं आगे बढ़ती जा रही हूँ।
कभी कोई साथी मिल जाता,
कभी कोई अपना बिछड़ जाता।
कभी नई कलियाँ खिल जाती,
कभी दिल को कोई बात चुभ जाती। सुख-दु:ख दामन में छिपा रही हूँ
मैं आगे बढ़ती जा रही हूँ।
कभी मन उदास हो जाता,
कभी मन विचलित हो जाता।
कभी जीवन में ठहराव आ जाता,
कभी पूरा परिवार बिछड़ जाता।
मन को बहुत समझा रही हूँ
मैं आगे बढ़ती जा रही हूँ।
कभी-कहीं शीतल तरु छाया, कभी-कभी मिल जाती माया।
कभी कहीं दुखों का डेरा,
कभी कभी खुशियों ने घेरा।
सबसे मजे लुटा रही हूँ
मैं आगे बढ़ती जा रही हूँ।
इस पग डंडी के आगे ,
नई पगडंडी बना रही हूँ।
सब छोड़-छाड़ संसार प्यार,
उस पर चलने जा रही हूँ।
खामोशी गले लगा रही हूँ
मैं आगे बढ़ती जा रही हूं...

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