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समय की गति कभी न रुकती,रुक जाती है श्वाँस।
मन की उड़ान,समय गति का,ना कर मानव ह्रास।
दुष्कर्म करके जीवन का,ना करो परिहास।
सजग,सुनियोजित प्राणी,रच देता इतिहास।

मन और समय ऐसे उड़ते हुए बादल हैं,जो कभी नहीं थमते।वही करना चाहता है मन जो उसे अच्छा लगता है। वही देखना चाहता है समय,जो उस घड़ी में होना होता है। मन को अभ्यास द्वारा फिर भी वश में किया जा सकता है पर समय चक्र तो चलता ही रहेगा। समय हाथ से निकल जाए और मन की कुछ अच्छी सोची बातें, हम समय पर ना करें तो बाद में पछतावा ही होता है। समय जब अच्छा चल रहा होता है और हम मन के कहे गलत रास्ते को अपनाते हैं, वह जीवन भर कचौटता है कि, समय रहते हमने अच्छा काम कर लिया होता तो कितना अच्छा होता?

मनुष्य के सोचने समझने की जो शक्ति है,यह प्रभु की देन है। बिना विचारे जो करें,सो पाछे पछताय।

काम बिगाड़े आपनो,जग में होत हसाय।।" जग का क्या है?वह तो ऊपर उठने वाले को कभी हँसता है, नीचे गिरने वाले पर भी हँसता है।

संसार में चले ,संसार के अनुसार चलें पर करें वही जो समयानुकूल हो। आज मेरी टाँग टूटी हुई है और मुझे दौङने की प्रतिस्पर्धा में भाग लेना है, पर क्या? यह समय की माँग होते हुए, मन की इच्छा होते हुए भी, मैं पूरा कर पाऊंगी? कदापि नहीं।समय रुकता नहीं,मन मचलता रहता है,पर तन का साथ भी उतना ही जरूरी है क्योंकि निरोगी काया ही सबसे बड़ा धन है।

जब हम छोटे होते हैं सोचते हैं बड़े लोगों को बड़ा मजा है। ना पाठशाला जाना ना पढ़ाई करना, बस घर में मस्त रहो,मौज करो ।पर जैसे-जैसे बड़े होते हैं, मन की स्थिति बदल जाती है।समय तो पंख लगाकर उड़ जाता है पर बीता समय व बचपन वापस कभी नहीं आता।तब सोचते हैं, काश !हम से तो बच्चे ही अच्छे! जिन्हें दुनियादारी का ज्ञान नहीं, अपनी मस्ती में मस्त जीवन! आनन्द ही आनन्द!

खुशी तो मानने से ही होती है। बासी रोटी,अचार,भुजिया भी भूख लगने पर जो स्वाद देते हैं, वह स्वाद भरे पेट रसमलाई खाने पर भी नहीं मिलता।खाना भूख लगने पर ही खाना सेहत व स्वास्थ्य दोनों के लिए अच्छा है। भूख बिना सिर्फ स्वादमयी वस्तु अपाच्य होकर, शरीर को बीमार ही कर देती है।

आज समय इतना बदल गया है कि, घर की दाल, सब्जी, चावल, रोटी खाना तो किसी को पसन्द ही नहीं आता। पिज़्ज़ा, बर्गर,चाऊमीन, पास्ता, मैगी, सबसे ज्यादा मोमो पसन्द आ गया है। अपने मामा को सब भूलकर मोमो को याद करते हैं। चाचा को भुलाकर चाऊमीन पसन्द करते हैं। सच पूछो तो बुआ को भूलकर बर्गर से नाता निभाते हैं। पापा को चाह कर भी पिज्जा और पास्ता खाते है।वाह रे नया युग व नए लोग !!!

हम त्यौहारों का इन्तजार, जवानी के इन्तजार से भी ज्यादा करते थे, कारण त्यौंहार पर बनी मिठाइयाँ,नए कपड़े, लोगों के यहाँ मिलने जाना, लोगों का हमारे घर आना कितना सुकूनमयी जीवन था। आज सारी कमी इस मोबाइल फोन ने ऐसी पूरी कर दी है, कि क्या बताऊँ? एक ही घर में इस कमरे से उस कमरे में बैठे लोग भी फोन पर ही बात कर लेते हैं। बच्चे ऑफिस व पाठशाला से घर आते ही सीधा लैपटॉप और मोबाइल की दुनिया में ऐसा घुस जाते हैं कि घर में दिनभर क्या हुआ ? कौन आया? कौन गया? ना ना कुछ भी मतलब नहीं। माता-पिता तो फिर भी काम की व्यस्तता से व्यस्त रहते हैं पर दादा-दादी जो कि वृद्धावस्था वश घर के बाहर भी नहीं जा सकते। तरस जाते हैं किसी घर वाले से बात करने।

रावण युग में रावण का वध हुआ। कंस युग में कंस का वध हुआ। आज के युग में बढ़ते स्वार्थ रूपी राक्षस का वध करने कब भगवान धरा पर आँयेगे? कब फिर से प्रेम की ज्योति जलाएंगे? कब नया प्रकाश, नया सवेरा होगा ?कब प्रेमी प्रेमिका, पति-पत्नी, परिवार, संबंधी फिर से मिलन करेंगे ।अभी तो पूरी जीवन की कथा व व्यथा मोबाइल पर ही सलट जाती है ।किसी को किसी की सेवा करना ही नहीं है।जो कमी रह गई थी वह कोरोना काल ने पूर्ण कर दी।ना मरे हुए पर रोने जाना और ना जन्म की खुशी में आना।

मैंने उस पुराने युग की छवि देखी है ।अलमस्त जीवन, प्यार ही प्यार, मिलन की खुशी ,विदाई का गम, बच्चों की पढ़ाई ,सास ससुर की सेवा, पड़ोसी का पापड़ बेलना अपना पापड़ पड़ोसी से बिलवाना ।यार !सब कैसे बदल गया ?सबके पास इतना पैसा हो गया कि किसी को किसी की जरूरत नहीं रही ।सब सामान बना बनाया मिलने लग गया ।एहसान शब्द वर्ण लिपि से निकल गया। एहसानफरामोशी से नाता ही टूट गया।

कोई बात,प्रश्न पूछना है तो "गूगल" देवता ने ऐसी जगह बना ली है कि और किसी का ध्यान ही नहीं आता। सबसे बड़ा रुपैया नहीं है अब है "गूगल भैया"

मन को जब इतना मसाला और माल मिल रहा है तो वह तो मचलेगा ही। कानो को सुनने मधुर संगीत मिल रहा है तो वह तो हरषेगा ही ।जीभ को इतनी स्वादिष्ट चीजें खाने को मिल रही है तो वह तो लपलपाएगी ही। आँखों को नित्य नये दर्शन देखने मिलेगे तो वह क्यों शर्माएगी? हाथ-पैरों व शरीर को हिलना ही क्यों है? हर मशीन के साथ रिमोट कन्ट्रोलर जो है। मजे से, मौज से माँसपेशियाँ मोटी हुए जा रही है, चर्बी चढ़ी जा रही है, तो खुशी का कहाँ ठिकाना?

क्या कहूँ?

अन्त में शरीर चलने-फिरने में लाचार हो,अस्पताल का मुँह दिखाता है। नई-नई बीमारियों का जो आविष्कार हुआ है, वह विज्ञान के आविष्कारों से भी ज्यादा जोर पर है। जितना इलाज उससे ज्यादा बीमारी। सुनकर, सोचकर डर लगता है।

मन की कही पर चल, समय पर अच्छे काम कर ले तो जीवन सफल हो जाएगा।ना मालूम कब क्या घटना घटित हो जाए? कब बादल फट जाए? कब धरा धँस जाए? कब मेघ बरस जाए? कब गाड़ी से बस टकरा जाए? आपातकालीन स्थिति का कहाँ पता?

महँगाई की मार सबको भारी लग रही है पर पहले चार रूपया रोज कमाने वाला जितना खुश था, आज चार हजार कमा कर भी खुशी नहीं है। क्योंकि मन की मर्जी पर चलते-चलते हमने अपनी जरूरतों का दायरा इतना बढा लियाहै कि पीछे मुड़कर अब देखने से हाथ लगता है पछतावा! मात्र पछतावा!!

अभी भी समय है। सुधरजा इंसान! थोड़ा याद कर उस परमपिता परमेश्वर को! जिसने प्रकृति, धरती, आकाश, और वातावरण की स्थापना की। उस व्यवस्थापक को रोज सुबह धन्यवाद कर सूर्य को अर्घ्य देकर, भगवान के मन्दिर में घृत दीप जलाकर, चन्द्रमा से शीतलता प्राप्त कर। वातानुकूलित मशीनों को छोड़! प्रकृति की गोद में खेल! देख मन समय की मुट्ठी में बन्द हो जाएगा।स्वर्ग सा सुख, शान्ति, समृद्धि पाएगा जीवन में !!

मन के घोड़े जिस तेज गति से भागते हैं, उस पर सन्तोष धन का चाबुक मारना जरूरी है। नहीं तो जीवन में आगे आने वाले कष्टों रूपी खाई का पता ही नहीं चलेगा।

मन कहता है आसमान में, परी बनकर मैं उड़ जाऊँ।
मन कहता है सात समुन्दर, मछली बन मैं तैर आऊँ।
मन कहता है पृथ्वी के, साथ चक्कर में लगा पाऊँ।
मन की उड़ान का अन्त नहीं है, कैसे मैं सब कर पाऊँ।
मन के बताए मार्गों पर, कैसे मैं चल पाऊँ।
मन का घोड़ा तेज दौड़ता, रोकथाम जरूरी है।
मन का मनका प्रभु से जुड़े प्रभु को पाना जरूरी है।

मन को ईश्वर ध्यान में लगा दें व समय का सदुपयोग करें। जीवन की दिशा व दशा दोनों ही सही पटरी पर आ जाएगी।

यह सत्य है कि,जो व्यक्ति निज पर अनुशासन कर ले वह जीवन में सब कुछ करने में सक्षम हो जाता है। काल की गति भी उस व्यक्तित्व के काबू हो जाती है।

वक्त रहते संभल जा मनवा, क्योंकि
वक्त की कीमत सबसे बड़ी,
वक्त बदलती किस्मत की घड़ी।
वक्त हाथ से फिसल ना जाये,
वक्त व्यर्थ कभी न गँवायें।
वक्त की चाल है अजब,
चित्र खींचती गजब गजब।
वक्त से पहले कुछ ना मिलता,
वक्त भाग्य से जा जुड़ता।

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