तन रूपी वाटिका मांही,
सपनों रूपी फूल खिलाया।
भाव-विचारों रूपी झोंकों से,
बगीचा मेरा खूब लहलहाया।।
प्यार रुपी पानी से सींचकर,
फल फूलों को पल्लवित पाया।
अनुराग रूपी माली बन कर,
जड़ चेतन को खूब रिझाया।।
लालच रूपी मकरंद चूसकर,|
मन रूपी भंवरा हरषाया।।
मुस्कान रूपी कली खिलने से,
हृदय रूपी तना द्रवित हो पाया।।
संशय रूपी आंधी को,
गृह बगीचे से दूर भगाया।
विश्वास रूपी कसौटी से कसकर,
खुद को खरा सोना बनाया।।
कालरूपी पक्षी गणों ने नोचा,
वन रूपी तन मेरा मुरझाया।
गिरे फूल की माफिक मैं भी,
औंधा गिरा स्वर्ग सिधाया।।
अश्रु रूपी वारिश बूंदों ने,
मिट्टी को मिट्टी में मिलाया।।
विश्वास मुझे था मेरे मालिक पर,
धाम प्रभु का मैंने पाया।
परिवार रूपी बगीचा मेरा,
नये फूल आने से, फिर मुस्कुराया।।