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एक ऐसा जीवन देखा मैंने
जिसकी कहूँ कहानी
गैर नहीं थी मेरी कोई
थी मेरी वह नानी

देख न सकती,सुन नहीं सकती
नाही वह चल पाती थी
दुखित होकर सोच रही मैं
कैसे जीवन वो बिताती थी

मै थी शरारती बच्चा
उनसे शरारत करती थी
झूठमूठ उनके कानों में
चिल्ला के आ जाती थी

कभी कहती मेरे पापा आए
घूँघट निकाल लो नानी
वह झटसंभल के बैठ जाती
मामी को कहती लाओ पानी

पापा की जगह मामी का हाथ
उनके हाथों में थमाती थी
हाथ सहलाते चूडी की पकड से
मेरी चोरी पकडी जाती थी

मेरा नाम जो है विमला
नानी बोल न पाती थी
कहती बँगला को पकडो
तबतक मैं भाग जाती थी

आज याद करकर उनको
आँखों मेंआँसू भर आये
कितना कष्टमयी था जीवन
कैसे नानीमाँ सह पाये

ईश्वर से है एक प्रार्थना
जब तक जिन्दा ईंसान रहे
परवश नही हो किसी का जीवन
सबके जीवन में शान रहे

बचपन में जो करी शरारत
मन आज सोच पछताता है
बूढे,लाचार प्राणी को देखकर
मन भावुक हो जाता है

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