Photo by Prabhala Raghuvir: www.pexels.com

मिलन की अनुभूति से, रोम रोम खिल उठा मेरा।
तारे गिन गिन रात बिताई, कब होगा पावन सवेरा।।
पौ का फटना, सूर्य का आना, खिला देता जीवन सारा।
अंग अंग में तरंगे उठती, देख प्रकृति का नजारा।।
नदियों का सागर से संगम, फिर बादल बनके आना।
उमड़ घुमड़ बरस कर बदरा, फिर नदियाँ नाला बन जाना।।
माटी से बीज का मिलना, खिला देता पौधों का रंग।
जड़, शाखा, तना और फूल, फल की रचना कर देती दंग।।
कैसे भूल सकते उस प्रभु को, जिसने संसार की, की रचना।
जड़ चेतन के मिलन से, होती जीवन की संरचना।।
भक्त और भगवान के मेल का, जब संयोग बन जाता है ।
लाख बाधाएँ हो जीवन में, रास्ता खुद बन आता है ।।
आत्मा का परमात्मा से संगम, जीव मोक्ष का दाता है।
धरा-गगन का मेल निराला, भ्रम क्षितिज कहलाता है ।।
नर और नारी का मिलना, जीवन का आधार है ।
एक सिक्के के दो पहलू, इनसे चलता संसार हैं ।।
जीव और शिव के मिलन की, होगी जो अन्तिम रात ।
स्वान्त:, सुखाय होगा बसेरा, जब होगी वह नवल प्रभात।।

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