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मैं स्वतंत्र हूं, सबल हूं ।
मुझे अबला ना समझना।
मैं धरा हूं ,शक्ति हूं,
हर दिल की हूं उपासना।।
मैं कोमल हूं ,सुमधुर हूं,
दया की मूर्ति ,पावन पवित्रता।।
क्यों? हर युग में छीनना चाहता पुरुष,
मेरी प्यारी, मनोरम स्वतंत्रता।।
धारण शक्ति का आधार हूं मैं,
मुझ में है नाहक सरलता।
सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति हूं मैं
कैसे छोड़ू अपनी भावुकता?
नैनों में है नीर,
मुझ में नहीं है निर्दयता।
नर की नैया हूं मैं,
कैसे छोडूं अपनी सज्जनता।।
लज्जा मेरा है गहना ,
जन्मों-जन्मों से मैंने पहना।
इज्जत पर हाथ कोई डाले,
कर देती जौहर अपना।।
रक्षा कर सकती हूं मैं,
मार सकती हूं पुत्र अपना ।
पन्नाधाय सी नारी हूं मैं।
जन-जन को है समझना।।
क्या ?बहन, बेटी और मां,
घर में नहीं तेरे पापी!
मचा रहे हो क्यों कोलाहल,
क्यों कर रहे आपाधापी।।
ऋषि मुनियों की स्वर्ग सी धरती,
जीने की स्वतंत्रता है सबको।
निर्भया कांड करके हत्यारों!
क्या मुंह दिखाओगे प्रभु को!!

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