गीत गूंजने लगे ईशर-गौरा के,
भक्तों मन खुशहाली छाई।
नूतन रंगमंच सज गया,
नववर्ष की,शुभ बेला आई।

सुरमई महक फैली चहूँ ओर,
मानो सुहानी हो गई भोर।
सप्तघोङों पर हो सवार,
सूरज ने किरणें बिखराई।

शरद रात्रि सम प्यारी,
रजनीगंधा की खुशबू न्यारी।
झिलमिलाते तारों के संग,
चन्दा ने चाँदनी छिटकाई।

कुसुम पल्लवित नयी कोंपले,
खुशनुमा वातावरण लाई।
सोलह ऋँगार धरा पृथ्वी ने,
सरस मधुरम् बेला आई।

मन उत्साहित,हृदय पल्लवित,
सावन की घटा सी छाई।
रिमझिम बारिश की बून्दों संग,
पवन चलन लागी पुरवाई।

मतवाले मन डोलन लागे,
पीहू-पीहू पपीहा बोलन लागे।
मयूर खोल पंख नाचन लागे,
धरती-गगन दमकन लागे।

मंगल गान,सुमधुर तान ,
हर दिल में उमंग है छाई।
माँ गौरा की करे आरती,
नववर्ष की शुभ बेला आईl

.    .    .

Discus