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जब बच्चा गर्भ में आता है
मां पगली हो जाती है
पृथ्वी पर लाने से पहले
वजूद अपना भूल जाती है
कैसे करूंगी लालन पालन
पगलापन दिखाती है
गोदी में लेने से पहले
समझदार हो जाती है

जीवन का प्रथम दायरा
पति को दिया जाता है
बच्चे के प्यार में,धीरे धीरे
परिवर्तित हो जाता है

अपना पेट काटकर उसे
बाबू साहब बनाती है
जीवन करदेती न्यौछावर
धूप में केश सुखाती है
एक दिन बड़ा आफिसर बन
मां के पास आता है
उसे देख गर्व से मां का
सीना फूल जाता है

पर क्या उसका पागलपन
कहीं कम हो पाता है
जरा सी गलती करने पर
पगली हो बेटा बोल जाता है

यह सच है हर मां की व्याख्या
बच्चे समझ न पाते हैं
थोड़ी बुद्धि पा जाने परै़
मां को पगली बताते हैं

हां ,है हर मां पगली
बच्चों को जीना सिखाती है
इसीलिये अपने बच्चों से
पगली वह कहलाती है

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