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मानव संस्कारों की अभिव्यक्ति का, रूप है परम्परा,
जन्म से मरण तक प्राणी,निभाता है परम्परा।
प्रदीप प्रज्ज्वलित प्रेम का कर,निभायें अपनी परम्परा,
प्रदूषित न हो प्रकृति की प्रणाली, बनायें हम यह परम्परा।
अनुभव सिद्ध व्यवहारों का,संकलन है परम्परा,
सुरक्षित स्वयं को पाते हैं,जब निभाते परम्परा।
वेद,पुराण,गीता,रामायण,लिखित रूप में परम्परा,
पीढ़ी दर पीढ़ी संचारित,होती रहती परम्परा।
निश्चित व्यवहार ,प्रतिमानो को,प्रस्तुत करती परम्परा,
मरण तुल्य होता समाज,जब लुप्त हो जाती परम्परा।
आधुनिकता की दौड़ में,पीछे छूट रही परम्परा,
बदलते परिवेश में,रूप बदलती परम्परा।
दहेज प्रथा की दावाग्नि, रौंदती है परम्परा,
विवाह दो दिलों के मिलन की,साक्षी होती परम्परा।
सुबह-शाम घृत दीप जलाएँ,यह हमारी परम्परा,
नित्य-नियम,सेवा-भाव,जाग्रत करती परम्परा।
अतीत की परछाईंयो की झलक होती परम्परा,
अध्यात्म ज्ञान आगे बढ़ाती, गुरु शिष्य परम्परा।
गाय, गंगा,गौरी पूजित हो,है हमारी परम्परा,
देव निवास करते वहाँ,जो निभाते यह परम्परा।
गुरु श्रेष्ठ है गोविन्द से, सनातन धर्म की परम्परा,
अतिथि देवो भव:,भारत की यह परम्परा।