अस्थि-कलश ले जाता हरिद्वार,
हर एक भारतवासी।
विश्वास अटल, मन में है समाया,
जीव तभी है मुक्ति पासी ।।
गंगा अवतरण की कथा,
हर लेता मन की व्यथा,
कैसे प्राकट्य हुआ मैया का,
है यह प्यारी कथा।।
गंगा दशहरा, जेष्ठ मास,
धरती पर मैया आई।
तेज थी धारा, वेग प्रबल था,
शिव जटा-जूट में समाई।।
अश्वमेध यज्ञ करने की,
राजा सगर ने ठानी ।
अश्व चुराया इंद्रदेव ने,
था जो बड़ा अभिमानी।।
बांधा हय तपस्वी प्रांगण,
ध्यान मग्न कपिल मुनि ज्ञानी।
साठ हजार सगरपुत्रों ने,
कर दी वहां नादानी।।
ध्यान मग्न कपिल मुनि को,
समझ गए वह चोर।
जोर-जोर से चिल्लाकर,
मचाने लगे शोर।।
तपस्वी की तंद्रा टूटी,
क्रोधित आग्नेय आंख ।
धक-धक कर जलने लगे,
सागर पुत्र हो गये राख।।
आत्म उद्धार की खातिर,
अनुज अंशुमान है आए ।
प्रार्थना की कपिल मुनि से,
चरणों में शीश नवाएं।।
प्रभु दयावान, कृपा के सागर,
मुक्ति का मार्ग बताएं।
पतित-पावन गंगा का जल,
भस्मी पर छिड़का जाए।।
अंशुमान को मिली ना सफलता,
मन में दु:ख करते जाए।
पौत्र भगीरथ अथक प्रयास से,
सुरसरि भूलोक में लाए।।
तेज प्रवाह गंगा धारा का,
कैसे पृथ्वी पर आए।
प्रार्थना की भोले शंकर से,
गंगा जटा जूट में समाए।।
पतित- पावनी, भवतारिणी गंगा, शिवजटा से धरा पर आई,
गंगोत्री से गंगासागर जाकर,
सागर पुत्रों को मोक्ष दिलाई।।
विष्णु चरण से निकली सुरसरि,
शिव जटा जूट में समाई ।
ब्रह्मा जी की कृपा से गंगा,
भगीरथ संग भूलोक में आई।।
जीव -उद्धारिणी, पतित पावनी,
स्वच्छ-शीतल गंगा मैया,
विश्वास अटल है, जल निर्मल है,
पार कराती जीवन नैया।।