काली रात,काल अँधेरी,कारावास में कृष्ण जन्म पायो।
वसुदेव-देवकी नंदन, कालिंदी पार कर गोकुल आयो।
चँद्रवंशी,चँद्र खुश करने,रोहिणी नक्षत्र में जन्मायो।
दुष्ट संहारण, मंगल कारण, प्रतिभामयी प्रतिभा दिखलायो।
पूतना मारी,कालियानाग नाथ्यो,मामा कंस पछाड्यो।
यशोदा के लाला,दाऊजी के भैया,गोवर्धन कनिष्ठा धार्यों।
यमुनातट नंदजी के लाला,बंसी मधुर बजायो।
सखियन वस्त्र ले चढ़े कदम पर,स्त्री धर्म सिखायो।
गोपियन घर घुस माखन खायो, मटकी फोड़ गिरायो।
ग्वाल बाल सखा संग डोले,मधुवन गऊ चरायो।
शरद पूर्णिमा, श्वेत चँन्द्रिका,चबूतरा एक बनवायो,
इक-इक गोपी,बीच में श्याम,पूर्ण प्रेम रस छायो।
राधाकृष्ण प्रिय जुगलजोड़ी ,श्रृंगार रस बरसायो।
गर्वित हो गई गोपियाँ,श्याम प्रेम धन पायो।
दर्प निवारण गोपियन को,निज को श्याम छिपायो।
विरह पीडा सहन नहीं होवत,राधा को भाग्य सराह्यो।
अश्रुपूरित वाटिका में डोलत,श्याम दर्शन ना पायो।
लता बीच वृषभान दुलारी,विरह पीड़ा में मुँह छुपायो।
श्याम मिलन बिन चैन न आवत,आओ कृष्ण मुरारी।
स्वप्न देखन लगी श्याम को,बृज वनिता संग राधा प्यारी।
चोटी गूंथत,दर्पण निरखत, बिंदी लगा , पहने सारी।
कहाँ छिपे हो मुरलीधर,दरश दिखाओ बनवारी।
सखियन निश्छल प्रेम देख,प्रकटे है बाँके-बिहारी।
नयन नयन ते मिले नयन तब, चहूँ ओर फैली खुशहारी।