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पृथ्वी ने बांटा है सबको,
जो उसके अंदर बाहर है।
जीने का अधिकार सभी को,
होता एक बराबर है ।।

प्रकृति ने किया ना अंतर,
कमी कोई नहीं कहीं हैं।
क्यों छीनते अधिकार किसी का,
क्या समझ हम में नहीं है?

धरती धरा वसुंधरा मां ने,
निज हित कुछ न बनाया है ।
जैसे पुत्र प्यारा हर मां को,
उसने सबको अपनाया है।।

हरी भरी धरती माता के,
हम सभी तो लाल हैं ।
अधिकाधिक मेहनत करने से,
प्रकृति होती खुशहाल है।।

अपनी कोख में रत्न अनेकों,
भू गर्भ में छिपाया है।
खनिक खोदने वालों को,
कहां!कहीं कुछ मिल पाया है?

कड़ी धूप हो या हो वारिश,
काम से जी ना चुराया है ।
ऐसे पृथ्वी के लाल का,
क्यों? शोषण होता आया है।।

जैसा बीज बोयेगें हम,
फल वैसा ही पाएंगे ।
नीम के पेड़ से हम,
आम कभी ना खाएंगे।।

श्रम करके पा सकते हम,
जो मांगी है दुआएं ।
बिन मांगे मोती मिलेगा,
परिश्रम करते जाएं।।

अपने वर्ग के सभी काम हैं
न नीचा ना कोई ऊंचा है ।
सूंईं का काम तलवार न करती
चाहे धागा कितना खींचा है।।

पेट में पल रही लक्ष्मी की,
भ्रूण हत्या करवाएंगे ।
नारी बिना अकेले नर से,
संसार कैसे चलाएंगे?

मेहनत करता कृषक यहां,
जंमीदार उसको दबाता है ।
अधिकार होता परिश्रमी का, कहना
कार्यों वह भूखा मर जाता है?

सबका अपना-अपना धर्म है,
अपने-अपने अधिकार हैं ।
यह भारत भूमि है निराली ,
जहां एक दूजे से सबको प्यार है।।

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