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वेद,उपनिषद ने ब्रह्म रूप में,यमुना मैया का गायन किया है ।

सच्चिदानन्द स्वरूपी महारानी को, सृष्टि का आधार रूप दिया है।
प्राचीन काल में यमुना नदी,मधुबन समीप बहती थी।
शत्रुघ्न ने यमुना की स्थापना,मथुरा जी में की थी।
यमुना नदी को श्याम रंग,भगवान शिव ने दिया है।
सती वियोग का सारा दु:ख,माँ यमुना ने हर लिया है।
यमुना का उद्गम स्थान यमुनोत्री, उत्तराखण्ड के गढ़वाल बंदरपूंछ में स्थित।
यमुना केवल नदी नहीं,मानव की प्रेरणा का दिव्य भाव इसमें समाहित।
हिमालय की "कलिन्द" चोटी से निकली धारा,"कालिन्दी","कालिन्दिजा" कहलाती।
हिमगिरों,हिममंडित कन्दराओं से निकल,तीव्र गति से बहती जाती।
आसमान से लगता जैसे,देवी सत्ता दौड़ी जा रही है।
अपने पीछे श्वेत-श्याम धारा के,चिन्ह छोड़ती आ रही है।
छुपन छुपाई खेलती यमुना,पहाड़ी ढलानों से आती है।
नव संवत्सर के छह दिन बाद, मैया धरा धाम आ जाती है ।
परम तेजस्वी सूर्य की सन्तान,है यम और यमुना ।
शनिश्चर और ताप्ती नदी की,बहन है श्री यमुना।
"यमुना का पान- गंगा में स्नान" लोकोत्ति प्रसिद्ध है।
जमुना का अर्थ जुँड़वा,भाई यमराज न्याय सिद्धहस्त है।
यमराज को त्रास देते देख माँ,गोलोक से ब्रज मंडल में आई।
भूमण्डल में किया बसेरा, वैष्णव जनों की त्रास मिटाई।
यमुनोत्री का तप्त कुण्ड,सूर्य कुण्ड नाम से जाना जाता ।
तापमान तेज है इतना,चावल,आलू पक जाता।
माँ यमुना कि उष्ण स्रोत जलधारा, गर्जना कर बहती है ।
यमुनोत्री में माँ यमुना के दर्शन,मृत्यु भय दूर करती है ।
यमुना नदी दिल्ली से गुजर कर, आगरा की ओर बढ़ती जाती।
मथुरा में दक्षिण पूर्व में मुड़कर, फिरोजाबाद,इटावा आती ।
चंबल,सेंगर,छोटी सिंधु, बेतवा,केन,संग मिल आगे,बढ़ती जाती।
प्रयागराज में ऐतिहासिक किले के नीचे यमुना,गंगा में मिल जाती।
श्यामल जमुना- गोरी गंगा का संगम, सरस्वती की छटा दिखाता।
तीनों नदियों का महासंगम,त्रिवेणी कहलाता ।
संगम भूमि प्रयागराज में ,कुम्भ का मेला लगता है ।
बारह साल में आता कुम्भ मेला,भक्तों का ताँता बँधता है।
" हजारों वैष्णव तार दिए जै-जै जमुना मैया "भजन गूंजता कान में।
कवि भक्त वल्लभ मार्गी,भजन गाते माँ यमुना की शान में।
आध्यात्मिक वैभव से प्रगट हुई,ब्रज मण्डल में यमुना।
आत्मा बिन शरीर अधूरा,ब्रजमण्डल अधूरा बिन यमुना ।
गिरिराज,गोवर्धन के जैसे,पूर्ण रूप पाती यमुना ।
अपूर्ण होती कृष्ण सेवा,झारीजी भरी न जाये बिन जल जमना।
कारागृह के बंद छुड़ा,वसुदेवजी नन्द घर लाते हैं जब कृष्णा।
उमङ-उमङ ऊपर चढ़ जाती,चरण छूने को कृष्ण के कृष्णा।
टोकरी में कृष्ण के चरण छू,यमुना शान्त हो जाती।
कृष्ण करेंगे रास विलास यहाँ,सोच आनन्दित हो जाती।
यमुना का विषैला जल शुुद्ध करने, कृष्ण कालिंदी में कूद जाते।
मित्र की गेंद, मामा के कमलदल लाने,विषधर पर नाचते आते।
जमुना के तीर पर कृष्ण ने,लीला अनेक रचाई ।
कृष्ण कृपा से कृष्णा,"कृष्णप्रिया" कहलाई ।
ब्रज संस्कृति के जनक कृष्ण,जननी यमुना मैया मानी जाती।
अष्टपट रानियों में एक पटरानी की, कालिन्दी पदवी पाती।
चुन्दरी मनोरथ में यमुना मैया को,इस छोर से उस छोर चुन्दरी ओढाई जाती।
दर्शन होते बङे मनोरम,परिवार में चुन्दरी बाँटी जाती।
भाई दूज को भाई-बहन का,यमुना में नहाने का महत्व है।
सुबह -शाम मैया की आरती दर्शन, करने आते भक्त हैं।
कार्तिक मास में यमुना किनारे, ब्रजवासी दीप करते हैं प्रज्ज्वलित।
यमुना की शोभा होती निराली,लगता जैसे तारे हैं सुसज्जित ।
आगरा में भगवान शिव का मंदिर, यमुना तट पर स्थित है ।
मुमताज महल की याद में बनाया ताजमहल, मंदिर को किया गया ध्वस्त है।
यम की त्रास मिटाती यमुना,गंगा भवसागर पार कराती।
हिमालय की गोद से निकली दोनों ,उष्ण-शीत धारा मे बहती जाती

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