कृपा बरसाते मुझ पर, माँ सरस्वती और परमपिता ।
मन बुद्धि से कर संघर्ष, लिखती रहती मैं कविता ।
चींटी,चिड़िया और मानव, मेहनत करते जाते हैं।
संघर्षों का कर सामना, लक्ष्य अपना वह पाते हैं।
सूर्य रथ पर हो आरूढ़, संघर्ष तम को घेरा है।
नवजीवन रूप में, दैदीप्यमान सवेरा है।
संघर्षों से टकराकर,आसमान की ऊंचाई पा गये।
राह के रोड़े हटाकर, उच्च शिखर पर आ गये।
उच्च शिखर पर पहुंचकर ,प्रकृति का देखा जो नजारा।
संघर्षों को भूल, पाया जीवन में सुख सारा।
संघर्ष ना होते जीवन में, आगे हम नहीं बढ़ पाते।
स्वर्णमयी अलौकिक सुख से, वंचित हम सब रह जाते।
संघर्षों का करे सामना, सीना तान खड़े हम हो जाएँ।
संघर्ष ही संघर्ष से टकराकर, चूर-चूर खुद हो जाए ।
संघर्ष रूपी स्वर्ण को, जीवन में इतना पिघलाए।
सफलता रूपी आभूषण को, जीवन में पाते जाएँ।
संघर्ष है एक जागृत सपना, जीने का ढंग सिखाता है।
धैर्य, नम्रता, और प्यार से, आगे की राह दिखाता है।
पंचतत्व की ये काया, मिट्टी में मिल जानी है।
संघर्षमयी परिस्थितियों से, हमने हार न मानी हैं।