जब भावों की हो पुनरावृति
दिखने लगे सब आकृति
सद्विचारों की मन में
बार बार हो आवृत्ति
शुद्ध करने हृदय को
बदलें अपनी मनोवृत्ति
जाना है सबको यहां से
दिखा के अपनी कलाकृति
गर्व,दर्प,झूठ,हिंसा की
बनाएं ना अपनी प्रकृति
प्रभु ध्यान नित्य करने की
बनाएं अपनी प्रवृत्ति
प्रभुधाम जाने के पहले
मोह-माया की हो निवृत्ति
उच्च साधना को अपनाकर
ख्वाबों से हो जागृति
मौनव्रत धारण करने की
मन को दें दें स्वीकृति
अपने किये बुरे कर्मों की
कर दें हम अनावृति
गाय, गंगा और गौरी की
पूजा कर पाएं सद्गति
अतिथि देवो भव:
भारत की है संस्कृति