Image by Ri Butov from Pixabay ब्रह्माण्ड विचारों के स्रोत वेदों की, आदि सृष्टि में हुई रचना।
मानव मात्र कल्याण के लिए, परमात्मा ने की संरचना।
सर्वाधिक प्राचीन साहित्य,सम्प्रदाय मतभेद न दर्शाता।
विज्ञान वादी प्रकृति वेदों की, पूर्ण विश्व में डंका बजता।
मौखिक परम्परा से,वेद ग्रन्थों का हुआ संचरण।
वेदों में होते हैं प्राप्त,कई वैज्ञानिक विश्लेषण ।
संसार के प्रथम धर्म ग्रंथ,ऋषियों को मिला ईश्वर से ज्ञान ।
अथाह ज्ञान के भंडार वेद,हर समस्या का मिलता समाधान।
ज्योतिष,गणित,चिकित्सा,प्रकृति, खगोल,भूगोल,रसायन विज्ञान।
ब्रह्मांड,ब्रह्म,देवता,नियम,धार्मिक इतिहास का मिलता प्रचुर ज्ञान।
यूनेस्को विरासत सूची में,ऋग्वेद की तीस पांडुलिपियाँ शामिल।
मानव सभ्यता के लिखित दस्तावेज, भारत का स्थान है महत्वपूर्ण।
अग्नि,वायु,आदित्य,अंगिरा,चारों ऋषियों को मिला प्रथम ज्ञान।
ब्रह्मा मुख से हुई उत्पत्ति,वेद जीवन के समाधान।
वेद "श्रुति" भी कहलाते,ईश्वर से श्रवण किया ऋषियों ने ज्ञान।
वशिष्ठ,शक्ति,पाराशर,जैमिनी, वेदव्यास,याज्ञवल्क्य,कात्यायन, ऋषियों के नाम।
वेद,वैदिक,अनुष्ठान,विज्ञान,वेदांग नाम से पहचाने जाते।
प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा, तक्षशिला,विक्रमशिला में पढ़ाये जाते।
ताङ पत्तों पर लिखे जाते,वेद मंत्र वैदिक काल में ।
वेद की पुरानी पांडुलिपियाँ,आज भी है नेपाल में।
लिपिबद्ध किया महर्षि वेदव्यास ने, वेदों की महिमा है अनंत।
वेदों का नहीं है कोई आदि,नाहीं वेदों का है अंत ।
उपनिषद,स्मृतियां,पुराणों में,मिलता है वेदों का ज्ञान।
मानवता का प्रथम ग्रंथ,देता आध्यात्मिकता का ज्ञान।
ज्ञान का भंडार वेद,पीढ़ी दर पीढ़ी करता मार्गदर्शन।
कल्याण हो मानव जाति का,ऋषि मुनि किए हैं अध्ययन।
कल्याण हो मानव समाज का, ऋषियों ने दिया शिष्यों को ज्ञान। ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद, चार भागों में बाँटा सम्पूर्ण ज्ञान।
ऋग स्थिति, यज: रूपान्तरण,साम गतिशील,अथर्व जड।
ऋग-धर्म,यजु:- मोक्ष, साम-काम, अथर्व अर्थ।
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष, चारों ही वेद के आधार।
ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद, वेदों के विभाग है चार।
ऋग्वेद
सम्पूर्ण विश्व और सनातन धर्म का, ऋग्वेद है प्रथम ग्रंथ।
मौखिक रूप में गाए जाते ,आज भी ऋग्वेद के मंत्र।
मृत्यु निवारक महामृत्युंजय मंत्र, नाना भाँति लोकोपयोगी सूक्त।
विश्व विख्यात गायत्री मंत्र,हिरण्य सूक्त और लक्ष्मी सूक्त ।
इतिहास की महत्वपूर्ण रचना,तत्व ज्ञान के नासदीय सूक्त।
ज्ञान-विज्ञान से सुसज्जित,विवाह मंत्रोचारिक सूक्त।
ऋग्वेद श्लोकों के स्वरों में,ईरानी अवेस्ता गाथाओं का वर्णन।
अग्नि,वायु,वरुण,सोम,भारतीय देवताओं का वर्णन।
मंत्रोऔर छंदों की रचना,किये हैं भिन्न-भिन्न ऋषि।
देवनागरी,खरोष्ठी,पाली,ब्राह्मी, ऋग्वेद की मूल लिपि।
देवताओं की प्रार्थना,स्तुति मंत्र, देवताओं का करते आह्वान,
छन्दों में बँधा यह ग्रन्थ,देता वेदों का सम्पूर्ण ज्ञान।
हवन,जल,वायु,सैर,मानसिक- चिकित्सा ज्ञान करते प्रदान।
पुनर्जीवित हुए च्यवन ऋषि,ऐसा भी लिखा है विधान।
वैदिक संस्कृत में लिखा गया,दुनियाँ का प्राचीन धर्म ग्रन्थ।
ऋचाओं में बद्ध ऋग्वेद, प्रथम वेद यह पद्यात्मक।
सप्त: सैंधव प्रदेश में,ऋग्वेद की हुई रचना।
आर्यो का निवास स्थल,सम्पूर्ण संस्कृति की पद्य रचना।
बहुदेववाद,एकेश्वरवाद,एकात्मक वाद का उल्लेख।
ब्रह्मज्ञा,सृष्टि रचना,मानव कर्तव्य का लिखा लेख।
वंशानुगत राज पद होगा ,ऋग्वेद हमें बतलाता।
सुदास भारत के प्राचीन राजा,दशरथ युद्ध के थे विजेता।
ऋक का अर्थ स्तुति परक मंत्र, संकलन मतलब संहिता।
काव्यात्मक ग्रंथ ऋग्वेद,"ऋक संहिता" नाम से जाना जाता।
सूर्या,उषा,अदिति,आशीर्षा, रूद्र,पवन,रवि,अश्विनी,वरुण।
तैतीस देवी देवतओं में,सर्वमान्य शक्तिशाली है इंद्र।
ऋग्वेद के दस मंडल,एक हजार अट्ठाइस सूक्त।
अष्टमंडल के अंत में ज्यादा,ग्यारह बालखिल्य सूक्त।
प्रथम और आखिरी मंडल मे,सूक्त संख्या में समानता।
दोनों का आकार बराबर,नाना ऋषि मुनि रचयिता।
द्वितीय मंडल के रचयिता गुरुत्समय, तृतीय मंडल विश्वामित्र का।
चतुर्थ के ऋषि बामदेव,पंचम मंडल ऋषि अत्री का।
षष्ठम के ऋषि भारद्वाज,सप्तम मंडल वशिष्ठ का।
अष्टम के ऋषि कण्व अँगिरा, नवम् समर्पित सोम का।
दशम मंडल औषधीय सूक्त,सवा सौ संख्या में औषधियाँ।
दसहजार पाँच सौ अस्सी ऋचाएँ,चार सौ देवों की है स्तुतियाँ।
यजुर्वेद
द्वितीय प्राचीनतम यजुर्वेद,महत्वपूर्ण एक श्रुति ग्रंथ।
याज्ञिक प्रक्रिया के इसमे,पाए जाते पद्य-गद्य मंत्र।
अग्नि,सूर्य,इंद्र,वरुण,देवताओं की प्रार्थना का वर्णन।
घर,परिवार,समाज,राष्ट्र,योग,धर्म, ज्ञान,शिक्षा,नैतिकता का दर्शन।
यज्ञ संबंधित गद्यात्मक मंत्र, "यजुस" नाम से जाने जाते।
आत्म-प्रकृति,अनुष्ठान,धर्म,मोक्ष की दार्शनिक विधि पाते।
चारों वेदों का गद्यात्मक समूह, यजुर्वेद है कहलाता।
"शुक्ल यजुर्वेद-कृष्ण यजुर्वेद",दो भागों में बाँटा जाता।
ऋषि याज्ञवल्क्य सूर्य आराधना कर, प्राप्त किये यजुर्वेद का ज्ञान।
कण्वादि पन्द्रह ऋषियों को,शुक्लवाजसेनी दिया गया नाम।
अन्नदान कर्ता वाजसनि कहाता,वाजसनेय होता पुत्र का नाम।
सूर्य का पर्याय वाजसनेय, याज्ञवल्क्य का बना उपनाम।
याज्ञवल्क्य को गुरु वैशाम्पयन ने,आज्ञा दी लौटा दो दिया मैंने जो ज्ञान।
योग बल से वमन कर,गुरु आज्ञा से उल्टाया समस्त ज्ञान।
वमन किये यजुसों को,"कृष्ण यजुर्वेद" दिया नाम।
तितिर पक्षी रूप धारण कर,शिष्यों ने भक्षण किया ज्ञान।
महाभाष्यकार पतंजलि ने लिखा, यजुर्वेद की एक सौ शाखाएँ।
शुक्ल यजुर्वेद की चौदह,छैयासी कृष्ण यजुर्वेद मे आए।
सामवेद
सबसे छोटा चारों वेदों में,गीत संगीत प्रधान सामवेद।
भारतीय संगीत की नींव का मालिक, "गीतों की पुस्तक" "मित्रों का वेद"।
एक सहस्त्र शाखाओं का धनी,दो भाग है आर्चिक और ज्ञान।
सम्पूर्ण वेदों का सार रूप,सबसे प्रतिष्ठित और महान।
पन्द्रह सौ चार मंत्र ऋग्वेद के, सत्रह अथर्ववेद और यजुर्वेद।
गीता में बताया श्री कृष्ण ने, वेदों में मैं हूँ सामवेद।
छांदोग्य और केंन उपनिषद,सामवेद के है अंश।
प्राचीन काल में आर्यों द्वारा,गाये जाते सामवेद मंत्र।
महर्षि कृष्ण व्यास द्वैपायन ने, सामवेद का किया संकलन।
पचहत्तर ऋचाओं,तीन शाखोओं में, सविता,अग्नि,इंद्र देवों का वर्णन।
गीतात्मक सामवेद में,अट्ठारह सौ पचहत्तर संगीतमय मंत्र।
प्रमुख विषय है उपासना,चारों वेदों का सार-अंश।
अथर्ववेद
सर्वप्रथम भगवान ने,अंगिरा को दिया अथर्ववेद का ज्ञान।
अथर्ववेद की रचना कर ऋषि ने, ब्रह्मा जी से कराई पहचान।
सर्वत्र ब्रह्मा जी की चर्चा,अथर्ववेद "ब्रह्म वेद" भी कहा जाता।
रहस्यमयी विद्या,विज्ञान,आयुर्वेद चिकित्सा की गाथा गाता।
युद्ध और शांति का वेद अथर्ववेद, शांतिमय जीवन का पाठ पढाता।
दिव्य उदाहरण कारण मानव,सुख शांति का मार्ग पाता।
गुण,धर्म,आरोग्य,यज्ञ के,पाँच हजार नौसौ सतहत्तर मंत्र।
ब्रह्म की उपासना के कवितामयी, अथर्ववेद में असंख्य मंत्र।
साहित्यिक,सांस्कृतिक,शास्त्रीय, समाजशास्त्रीय गुण विद्यमान।
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष,चतुर्थ पुरुषार्थ का करता गुणगान।
सुख,शांति,समृद्धि,उपचार,मानसिक- शारीरिक रोग का निदान।
शक्ति,ऊर्जा,रक्षा,सुरक्षा,प्राचीन क्षमता करता प्रदान।
अथर्ववेद का ज्ञाता,जिस देश में,शांति स्थापन कार्य मे लीन रहता।
वह राष्ट्र उपद्रव रहित होकर,निरंतर उन्नति करता।
तीनों वेदों की भाषा से,अथर्ववेद की सरल भाषा।
यज्ञ के प्रधान मुखिया ब्रह्मा,ब्रह्मा अथर्ववेद ज्ञाता।
अथर्ववेद का विषय वस्तु,तीनों वेदों से है भिन्न।
जादू,टोना-टोटका औषधियाँ, लौकिक जीवन से है अभिन्न।
प्रेत आत्मा, तंत्र-मंत्र में,अथर्ववेद करता विश्वास।
राक्षस,पिशाच, डरावनी शक्तियाँ, विषय वस्तु है यह खास।
दीर्घायु मंत्र,प्रेम मंत्र,प्रार्थना,वेद अध्ययन में सफलता।
पाप-प्रायश्चित,श्राप-उपचार,रिश्तों में बढाता घनिष्ठता।
ब्रह्माण्डीय सिद्धान्त,महिमा मंडम, अतिथि सत्कार की महत्ता।
विवाह प्रार्थनाएँ,अंतिम संस्कार मंत्र, अनुष्ठानिक मंत्र बतलाता।
सप्त सूक्त से सजा अथर्ववेद,हर सूक्त की अलग कथा।
जीवन जीने की कलाएँ,तीनों वेदों से भिन्नता।
प्रथम भैषज्य सूक्त में,रोग चिकित्सा,औषधीय वर्णन।
द्वितीय "आयुष्य"सूक्त में,दीर्घायु प्रार्थनाओं का वर्णन।
तृतीय "पौष्टिक" सूक्त में,गृह निर्माण, कृषि-खेती का वर्णन।
चतुर्थ "प्रायश्चित"सूक्त में, पाप कर्मों के प्रायश्चित का वर्णन।
पँचम "स्रीकर्म "सूक्त में ,विवाह,प्रेम संबंध का वर्णन।
षष्ठम सूक्त "राज कर्म"में,राजा,राज कार्यों का वर्णन।
अथर्ववेद का सप्तम विशेष सूक्त, "पृथ्वी सूक्त"है कहलाता।
धरती का पुत्र है मानव,धरती सब की है माता।
वेद अनन्त,वेदांग अनन्ता,
श्रवण, मनन,कथन करे संता।
जप,मंत्र,पूजा,व्रत,नियम,
जीवन के यह अभिन्न अंग।
धर्म तो बस एक है, कुरीतियों ने किया विनाश।
मानव धर्म सबसे ऊँचा,नारा यह वेदों का खास।
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