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भावनाओं से ओतप्रोत मैं ,सपने नये संजो रही हूँ।
सपनों में प्रभु दर्शन कर, भाव विभोर हो रही हूँ ।
इस कलयुग में कला की छाया, चारों ओर फैल रही है ।
मशीनी युग में इंसान को ,भावनाओं की कद्र नहीं है ।

कहाँ? गुरुवर की तरुवर सी छाया !
लुप्त आज हो गई है।
कैसे? प्रणय प्रेम की भाषा! मर्यादा वंचित हो गई है ।
यह शिक्षा की देन है," या" है आब हवा का असर।

इंसान इंसान की पीठ में, खोभ रहा है खंजर।
जन्म दात्री पालन हारी माँ का, अपमान हुआ जा रहा है ।
पेट काट पालने वाला बाप, सड़कों पर धक्के खा रहा है।
मैं ,उस पीढी के दरम्यान फंसी हूं जहाँ।

पीछे सतयुग की छाया ,आगे कलयुग की दास्ताँ।
संयुक्त कुटुंब ने दम तोड़ दिया यहाँ,
कागजी फूलों के रिश्तो में है महक कहाँ?

ज्ञान बांटने का साधन, हर किसी को प्राप्त यहाँ।
बिन पेंदी के लोटे जैसा ,ज्ञान घूमता जहाँ- तहाँ ।
कोई पुरवाई ऐसी आ जाए, सच्चा ज्ञान दिलों में भर जाए ।
अपने पराए का भेद मिटाकर ,धरा को स्वर्ग बना पाएं ।
सच्ची राह दिखाने वाला, सच्चा मार्गदर्शक मिल जाए ।
ऐसा यंत्र बना दे कोई ,दिलों के तार जिलों से जुड़ जाए ।
मैं चाहती हूँ, कहीं ऐसा परिवेश, भेष बदलकर आ जाए ।
आज की नव पीढ़ी को, सत्मार्ग की राह दिखा पाए।
गौतम बुद्ध, महावीर, रामकृष्ण परम हँस, विवेकानंद से संत लौट आएं ।
मन, बुद्धि निर्मल करे जन-जन की
राग ,द्वेष ,वैमनस्य लुप्त हो जाए ।
पर्वत सा अटल हो जाए विश्वास हमारा, सागर सी पाले गहराई ।
धरती से सीखलें परोपकारिता ,
आकाश सी पाले ऊंचाई ।
नन्ही परी चींटी रानी सी, लक्ष्य शक्ति हम पा जाएं ।
चाहे हो पर्वत पर चढ़ना धैर्य शक्ति से चढ जाएं।
मोर है पक्षियों का राजा, बिन "काम" काम सब कर पाता ।
क्यों ?कामुकता में हो आतुर, इंसान लक्ष्य ना साँध पाता।
वफादारी में अव्वल,प्यारा जानवर श्वान हैं।
आज के युग में देखो! गिरा हुआ इंसान हैं ।
परिश्रमी होते हैं पक्षी,तिनका- तिनका घोंसला बनाते हैं ।
दाना चुन- चुन कर लाते ,बच्चों को उड़ना सिखाते हैं ।
प्रकृति ने दिया है इतना ,पग-पग पर है मार्गदर्शक !
सूर्य ,चांद, तारागण ,पृथ्वी ,है हमारे सच्चे पथ प्रदर्शक।
मन में फैला जो अंधेरा ,गुरु ज्ञान प्रकाश फैलाता है ।
काली अँधेरी रात छट जाती, जब सूर्य उदय हो जाता है ।
सच्ची राह दिखाने वाला ,गुरु होता है सर्वोत्तम !!
गुरु ही वह जरिया है ,जिससे मिलते पुरुषोत्तम!!!

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