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गले लगाना, ना चाहा था जिसे ,
वह पक्की सौतन थी मेरी ।
ना चाह कर भी जिंदगी में ,
उससे हो गई दोस्ती गहरी।।(१)

मातृ गर्भ से पृथ्वी पर ,
पदार्पण जब हुआ मेरा ।
भाई बहन साथ थे फिर भी ,
उसने, हाथ पकड़ रखा मेरा।।(२)

सोचा शिक्षा प्राप्त करके,
मैं भी कुछ बन जाऊंगी ।
शायद सौतन से दूरी ,
तभी मैं बना पाऊंगी।।(३)

यह मेरा मिथ्या अवलंबन,
ना छूटा ना छोड़ पाई ।
शादी कर ,पति संग मैं,
अपने ससुराल चली आई।।(४)

सास- ससुर, जेठ और देवर ,
भरा-पूरा परिवार मेरा ,
सोचा अब तो सौतन से,
छूट जाएगा साथ मेरा।।(५)

मैं अपनी मस्ती में लीन,
जीवन सुख से चलने लगा ।
पुत्र-पुत्री की किलकारी से ,
घर मेरा चहकने लगा।।(६)

मधुर कर्णप्रिय संगीत जैसा,
जीवन मेरा गूंजने लगा ।
ब्याज से मूल में ज्यादा,
मन मेरा फंसने लगा।।(७)

सोच रही थी मन में मेरे ,
चली गई मेरी सौतन ।
देश निकाला दे कर मुझको ,
पकड़ ली उसने दूसरी थरकन।।(८)

यह मात्र भ्रम था मेरा,
स्वप्न था ,जो टूट गया ।
अगले क्षण आहट से उसकी,
दिल मेरा ,डर से धड़कने लगा।।(९)

कैसे छोड़ कर जाऊं तुमको,
मैं हूं तेरी पक्की सहेली।
प्यार से हाथ पकड़ ले, नहीं तो,
बूझ सकेगी ना, जीवन पहेली।।(१०)

जिससे डरकर मैं जीवन में ,
दूर दूर भाग रही थी।
मृत्यु रूपी सच्ची सौतन ,
सहेली बन साथ निभा रही थी।।(११)

साथ छूट गया जब सबसे ,
साथ वह मेरे जा रही थी।
प्रभु के, उस प्यारे धाम में ,
सम्मान मेरा बढा रही थी।।(१२)

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