एक सुखद कल्पना,निराधार पर सबके आधार,निरंकुश पर सब पर अंकुश ,निर्गुण पर हर हृदय में सगुण साकार रूप!
कृष्ण कल्पनामय श्याम ,पर मनमोहक!आहा! ऐसा साँवला सलोना स्वरूप !जिस पर वारी-वारी जाए हर नारी। नारी क्या? पुरुष क्या? उसके लिए तो हर जड़ चेतन एक ही रूप है।
क्या कृष्ण को तुमने कभी देखा है? तो सच बात तो यह है कि हर रूप में, दिशा में,जहाँ में,दिल में, धड़कन में उसी का साम्राज्य है।
उससे भी ज्यादा नजदीकी हम मोहन से चाहते हैं तो हर बालक कृष्णमयी होता है ।बालपन की चपलता, भोलापन ,होशियारी क्या है ?उसका ही दर्शन है।
सूरदास जी को कुछ नहीं पर श्याम दर्शन होते हैं ।बन्द आँखों में भावनाओं की आँधी जो उड़ती है उस उडान में श्याम दर्शन पाते हैं सूरदास, और बन जाते हैं सूर के पद!
हर जगह "कृष्णमयी बन मीरा", कृष्ण को ही पाती है,पति रूप में, मालिक और स्वामी रूप में ।राजपाट सब छोङ कृष्ण रूप में रंग जाती है मीरा और रच डालती है भगवान के भजन!
अर्जुन के सखा रूप बन श्याम रचा देते है "महाभारत"और बन जाते हैं अर्जुन के सखा से सारथी।
पाँडवों और कौरवों के युद्ध के मध्यस्थ जब भगवान अर्जुन का रथ खड़ा करते हैं, तब अर्जुन मोहवश "युद्ध नहीं करूँगा श्याम" कहकर रथ पर जाकर बैठ जाते हैं।
उस वेला में भगवान उन्हें मोह माया हटाने हेतु, देते हैं गीता का ज्ञान। उस ज्ञान के बिना हर ज्ञान अधूरा है। गीता ही सब धर्मों का सार है,नींव है,आधार है।
भरी सभा में दु:शासन द्रौपदी को खींच कर लाता है,पाँचो पाँडव और कौरवों की सभा के मुख्य पितामह भीष्म, कुछ कह नहीं पाते हैं, उस समय में द्रौपदी बड़ी आतुर हो, श्याम को पुकारती है तो कृष्ण परोक्ष रूप से द्रौपदी का चीर बढ़ाते हैं, बढ़ाते ही जाते हैं ।"नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है,नारी की ही सारी है कि सारी की नारी है।"
भक्त प्रहलाद को हर जगह भगवान ही भगवान दिखते हैं । उसका इतना अटल विश्वास है कि भगवान को भी खम्भ से प्रकट होकर आना पड़ता है, और दुष्ट हिरणकश्यप का संहार करना पड़ता है।
कृष्ण को पाने की आस में मंदिर, तीर्थ,व्रत जैसे कई आयोजन कर डालते हैं हम,भूल जाते हैं कि ईश्वर हर जगह विद्यमान है।
हमको अँधेरों से डर लगता है।ह्रदय रूपी गृह में ज्ञान का दीपक सिर्फ भगवान का नाम है।नाम संकीर्तन ही ह्रदय में प्रेम प्रकाश की ज्योति जलाएगा ।
भगवान पर अटल आस्था रखेंगे तो पत्थर में भी संगीत पैदा हो सकता है। भगवान भी जरूर दर्शन दे सकते हैं।
क्योंकि,
दृश्यमान जगत के,परमार्थ स्वरूप है श्री कृष्णा।
पृथ्वी,जल,तेज,वायु,आकाश,पांचो सत्यों के रूप है श्री कृष्णा ।
सृष्टि-कर्ता,सृष्टि-भर्ता,सृष्टि संहारक है श्री कृष्णा।
सम दर्शक,मधुर वाणी के,प्रवर्तक है श्री कृष्णा ।
कमल समान कोमल नेत्रों वाले,सुमधुर है श्री कृष्णा।
संसार सागर पार,कराने वाले हैं श्री कृष्णा ।
परम पुरुषोत्तम प्रकाश स्वरूप,सच्चे हितैषी है श्री कृष्णा ।
दुष्ट संहारक,भक्त प्रतिपालक,गौ रक्षक है श्री कृष्णा ।
संसार रूपी वृक्ष की,उत्पत्ति के आधार है श्री कृष्णा।
नन्द-यशोदा के कान्हा,वसुदेव- देवकी के सुपुत्र श्री कृष्णा ।
सखियों के स्वामी,सखाओं के सखा, राधा हृदय बसत श्री कृष्णा।
ब्रज सूना है कृष्ण बिन,बृजवासी मृत है बिना कृष्णा ।
मम:हृदय रूपी कमल के माँही, चाहूँ वास करे श्री कृष्णा।
कृष्ण कोरी कल्पना नहीं है। जिस रूप में उसे देखना चाहेंगे वह अवश्य दृश्यमयी हो जाएँगे। कभी किसी आपात्त अवस्था में कोई सहारा,चाहे वह तिनके का सहारा ही क्यों न हो,वो कृष्ण रुप ही है। "मानो तो देव नहीं तो पत्थर"यह कहावत चरितार्थ होती है जीवन में बार बार, कई बार।
क्या गोपियों के माखन बिना कृष्ण को माखन नहीं मिलता? क्या गोपियों के वस्त्र चुरा,कदम पर चढ छिप जाना, कृष्ण की अनूठी लीला नहीं है ?क्या गोवर्धन पर्वत मात्र कनिष्ठा अंगुली में उठाना किसी साधारण मनुष्य के वश में है ?क्या पूतना,कंस,अघासुर,बकासुर मारना सरल था।
यमुना जी का जल पवित्र करने, कालियानाग का दमन करने कृष्ण कालिन्दी में कूद जातेहै।ब्रज वासियों के ऊपर आए हर कष्ट को हर लेते हैं।
आज भी भारतवासी एक विश्वास पर ही जन्माष्टमी का त्यौहार ऐसा मनाते हैं जैसे उनकी अपनी सन्तान का जन्म हो ।क्या यह चमत्कार से कम नहीं?
जब-जब भक्तों पर भीड़ पड़ती है, तब -तब अवतरित होते हैं पृथ्वी पर कृष्णा !!!धरा का भार उतारने,दुष्टों का संहार करने ।
जय श्री कृष्णा