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कारे कान्हा, कारी कमर ,काल काल में व्याप्त है।
खड़ी खिलौना खरीदत गोपी, नटखट मन को लुभात है।
गुलाबी गुलाब गलियारे में, राधा के मन को सुहात है।
घड़ी घड़ी घर में घुसत कान्हा, कभी बाहर जात हैं।।

चारु चाँद की चँद्रिका, चमकत है चहूँ ओर ।
छाजे -छाजे छबीली छोकरियाँ,नृत्य करत जैसे मोर।
जगजाहिर जादूगर जैसा जादू करता है चितचोर ।
झूला झूलावत , झाँझर झँकृत, झाँझरिया मचावत शोर।।

टोली-टोली टटोलत कान्हा,टेरत ले
गऊँवन का नाम।
ठुमक ठुमक कर चलती गैयां, ठुमकती
वत्स-वत्सी और श्याम।
डगर डगर पर डंडा नचाए, डफली बजाए नन्द के लाल।
ढोलक,ढोल, मृदंग,झंझावत, बंशी बजाए मदन गोपाल।।

ताल-ताल पर नाचत मोहन,सखियन झुंड बीच घनश्याम ।
थिरकत-थिरकत राधे आई, जोड़ी बनी राधा और श्याम।
दिव्य देव पुष्पन वारिश से, त्रिलोकी होती आनंदित।
धन्य धन्य ब्रज नगरी सारी, सब देख रहे हो चित्रलिखित ।
नटवर नागर का नृत्य देख ,जन-जन हो रहे आनन्दित।।

पनघट पर पनिहारिन आई ,गगरी भरी श्याम उठाई।
फूली फूली फिरत गोपियाँ, कभी हँसत कभी होत रुसवाई।
बंसी बजावे, माखन चुरावे, सखियन घर में इत-उत डोले।
भोर-भोर भारी भर मटकी,बृजवनिता खाये हिचकोले।
मनमोहन मत फोड़ो गगरी, सास सताए, पति बड़बोले।।

यामिनी में यमुना तट पर, चबूतरा एक श्याम बनवायो।
रास रच्यो राधा सखियन संग,शरद पूनम को चाँद रिझायो ।
लाल लाल हो गई लाजवश, लाभान्वित जीवन रस पायो।
वृँदावन वास, बिहारी कारण, बृजवासी नयनन सुख पायो।।

शीश शशि,जटा जूट गंगे, गोरा संग पधारे महारास।
सर से खिसक गई शिव सारी ,कृष्ण करन लगे उपहास ।
षोडश कला धारी कृष्ण ने, गोपेश्वर दिया शिव को नाम।
हरि हर से करत प्रार्थना, विमला का स्वीकारो प्रणाम।।

क्षत्रीय रूप धर दुष्टों को मारा, द्वारका बसाई बन द्वारका के नाथ।
त्रास हरी भक्त सुदामा की, पाँडवों को किया सनाथ।
ज्ञान दियो गीता को प्रभु ने,बने सारथी त्रिलोकीनाथ।

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