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सोचती हूँ....
कवियित्री अगर ना बनती,
शायद लेखिका मैं बन जाती।
अपने मन के उद्गारों को,
साद,पन्नों पर आँक पाती।
लेखिका अगर ना बनती,
शायद अध्यापिका मैं बन जाती।
किताबी,बोझ हटा कर,
नई राह विद्या की सिखलाती।
अध्यापिका अगर ना बनती,
शायद चिकित्सिका मैं बन जाती,
मीठी वाणी के अमृत से,
कुछ दर्द दूर में कर पाती।
चिकित्सिका अगर ना बनती,
शायद परिचारिका मैं बन जाती।
नि:स्वार्थ सेवा भाव रखकर ,
निज स्वार्थ से बच पाती।
परिचारिका अगर ना बनती,
शायद देशभक्तिन मैं बन जाती।
अपने देश की उन्नति खातिर,
कार्य अनूठे कर पाती।
देश भक्तिन अगर ना बनती,
शायद मालिन मैं बन जाती।
नित नूतन माला पिरोकर,
प्रभु को अर्पण कर पाती।
मालिन अगर ना बनती,
शायद पुजारिन मैं बन जाती ,
मन मंदिर में बसे प्रभु को,
ह्रदय कमल में रख पाती।।

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