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(१)सुधाकर सुधा बरसाता,

शिव जटा की शोभा बढ़ाता है।
उष्ण से प्रकाश पाकर भी,
शीतलता का पाठ पढ़ाता है
(२)अमावस से पूनम तक सुधाकर, नाना आकार बदलता है।
पूर्णिमा को पूर्ण रूप धरकर,
प्रकाश पुँज फैलाता है।
(३)शरद पूनम की रात निराली,
श्वेत चांदनी छाई है।
कृष्ण रास ,महा रास रचाते,
धरा देख हरषाई है।
(४)करवा चौथ को हर एक नारी,
चाँद के दर्शन करती है।
अगर बदरी में छुप जाए चँदा,
एक झलक को तरसती है।
(४)साजन है अगर दूर देश में,
सजनी की पीड़ा बढ़ाता है।
प्रेम निशानी का पूरक चन्दा,
बच्चों का मामा कहलाता है।
(५) सागर, धरती, आकाश, तारे,
बिन मयंक रिक्त हो जाते हैं।
दिनकर की महिमा बढ़ जाती,
जब निशा कर आते हैं।

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