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सागर -सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरी -सा ऊँचा जिसका मन।
ऐसे सुयोग्य व्यक्ति को मैं,
करती हूँ ह्रदय से नमन।।
सुयोग्य अवसर की खोज में,
व्यर्थ करें ना अपना आज।
हर अवसर सुयोग्य बन जाता,
जब करते हम अच्छे काज।।
मन ही मेरा सच्चा साथी,
ऐसा मित्र कोई और नहीं,
कागज कलम पर लिखती मैं,
कुछ कही कुछ अनकही।।
सुयोग्य पद पर हो आसीन,
जो काम दूजे के आता है,
उसके जीवन में चहूँ ओर,
प्रकाश पुञ्ज फैल जाता है।।
सन्तान रत्न की प्राप्ति से,
मन तृप्त हो जाता है।
सोने पर होता सुहागा,
जब वह सुयोग्य बन जाता है ।।
सुयोग्य शिष्य को पाकर,
गुरु अनुगृहीत हो जाता है।
गुरुकुल नाम उज्जवल करता,
स्वयं यशस्वी हो जाता है।।
सुघड़, स्वस्थ,सुयोग्य नारी,
जीवन खुशहाल बना लेती ।
सन्तोष सुख को अपनाकर,
घर को स्वर्ग बना देती ।।
सुयोग्य नेता चुन ले जनता,
देश उन्नति कर जाता है।
लालच की डोर न पकड़े,
जग में नाम कमाता है।।
ईश विश्वास ही सुयोग्य साथी,
होता है,हर जीवन में।
हर पल प्रभु का हाथ थाम लें,
नहीं गिरेंगे दलदल में।।
सुयोग्य वर-वधू की तलाश में,
रहते हैं हर माता-पिता ।
किस के भाग्य में क्या लिखा,
यह है विधाता को पता।