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नन्हें-नन्हे बालकों को देख,फिर गई मेरी मति।
ना जाने इन नौनिहालों की,होगी क्या आगे गति?
क्या ऊँचा उठ ये अपना,नाम रोशन कर पाएँगे?
या जिन्दगी भर खच्चर सम,बोझा कन्धों पर उठाएँगे?
क्या मानवता के इन बीजों को,सही माटी में बोया जाएगा?
लदे-लदे फलों से ये,पेड़ हरा-भरा हो पाएगा?
या कुचल देगा इनको,कोई दुष्ट,दैत्य, दानव।
जिन्दगी कैसे बचेगी?कैसे बनेंगे ये मानव?
मानवता अगर है जीवन में,कोई अनाथाश्रम न बन पाएगा।
अपने पाप की निशानी को,धरा पर कोई ना लाएगा।
दया पात्र बन जाता शैशव,दया की भीख पाता हैं।
दया का खाना खाकर ,दरिद्री बन जाता हैं।
अनाथ आश्रम में कभी-कभी हम, दान पुण्य दे आते हैं।
मन को हल्का कर जैसे,स्वर्ग सा सुख पाते हैं।
माना
कभी कोई दानी व्यक्ति,दान बहुत दे जाता है।
पर सच में उसका सदुपयोग,क्या अनाथ कर पाता है?
माना
कभी कोई सन्तान हीन दम्पति, अनाथाश्रम से सन्तान पाता है।
बच्चे को मात पिता मिल जाते,खुशहाल परिवार बन जाता है।
माना
कोई मजबूर लाचार माँ ही,सन्तान झूले में रख जाती है।
अनाथ आश्रम की परिचारिका,उसे पाकर हर्षाती है।
गलती बालक की नहीं होती,फिर भी सजा भुगतता है ।
माँ दिल पर पत्थर रख लेती,हृदय उसका सुलगता है।
हम कभी यह नहीं सोचते,एक बच्चे को घर ले आएँ।
पाल-पोष इन्सान बना,जीवन उसका सँवार पाएँ।
या
कभी अध्यापक बनकर,सही मार्ग उनको दिखलाएँ।
नैतिकता का पाठ पढ़ा,ऊँचा उनको उठा पाएँ।
या
कोई शिक्षा केंद्र खोल,हस्तशिल्प की शिक्षा दिलवाएँ।
शिक्षित इतना कर दें कि,जीवन उनका सँवर जाए।
या
कभी प्रकृति की गोद में,खेलने उनको ले जाएँ।
नव फूलों सी नई उमंग,जीवन में उनके भर जाए।
या
कभी कोई चित्रकार से,चित्र उनका बनवाएँ।
निज चित्र को देख खुशी से,वह भी कलाकार बन जाए।
या
किसी वैज्ञानिक के संरक्षण में,विज्ञान ज्ञान उन्हें करवाएँ।
सूरज,चाँद,तारों के जैसे,जीवन उनका चमक जाए।
शिक्षा बचपन से दी जाए,बालक उन्नति कर पायेगा।
स्वयं अच्छी राह पकड़,औरों को राह दिखायेगा।
अनाथ आश्रम का नाम बदल ,"स्वश्रम अधिकार बालगृह" रखा जाए ,
कर्मचारी नहीं वहाँ पर,शिक्षक नव पदवी पाये।
अनाथ आश्रम अनाथों का गृह, जिनके न हो कोई मात पिता।
पर परिश्रमी बालकों का,सारा जग कर्ता-धर्ता ।
अनाथ आश्रम दया पर चलता, परिश्रमी चलता पैरों पर।
दयावत प्राणी कुचला जाता,मेहनती छूता उच्च शिखर।
मजबूर हुई थी कुन्ती माँ,कर्ण कुमारी
जाई थी ।
सामाजिक डर से उसने,अपनी सन्तान गँवाई थी।
अनाथ आश्रम हट जाए,समाज सुधार करना होगा।
नाजायज सन्तान को भी,उच्च दर्जा देना होगा।
सामाजिक अधिकार मिले बच्चों को, वह नाजायज ना कहलाए।
मात पिता के कुकर्मों की सजा,जीवन भर वह क्यों पाए?