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मंगल व शुभता का प्रतीक, शास्त्रों में तिलक माना जाता।
हिंदू संस्कृति की पहचान, सर्वप्रथम लगाया जाता।

भृकुटी मध्य आत्म दर्शन, तिलक वहाँ लगाया जाता।
नाड़ी चक्र की सर्व नाङियों का, जहाँ जुड़ा है पूर्ण नाता।

कुमकुम,केशर,चंदन, रुधिर, कई तरह के तिलक लगाए जाते।
मस्तक मध्य लगाकर तिलक,भाग्य की गरिमा बढा पाते।

बिन तिलक पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान, सम्पूर्ण नहीं माने जाते।
मनोकामना का पूर्ण फल मिलता, मांगलिकता दर्शाते।

विदाई की बेला में तिलक का, महत्व बड़ा पुराना है।
कार्य शुभ होगा राह में, यही सोच घर से जाना है।

रक्षाबन्धन के शुभ दिन, भाई के तिलक लगाती बहना।
चाहत दोनों की निराली, एक दूजे की रक्षा की कामना।

चन्दन, केसर,कुमकुम, अष्टगंध, भस्मी तिलक का मान है।
जैसा कार्य वैसा तिलक, लगाने से मिलता सम्मान है।

नव-वर्ष, नव कार्य काआरम्भ, तिलक लगा किया जाता।
नकारात्मक उर्जा का नाश होता, मन धैर्य, शान्ति पाता।

कुमकुम सुहाग की निशानी, केशर कामना पूरी करता।
भस्मी तिलक भय मिटाता, लालचंदन मांगलिक दोष हरता।

पीलाचंदन मानव शरीर का, तापमान एक समान रखता।
आशीर्वाद मिलता ईश्वर का, मस्तिष्क सुचारू कार्य करता।

मातृभूमि की सेवा मे रत जवान, मृत्तिका का तिलक लगाते हैं।
पग-पग पर पड़े रोड़ों को, मार्ग से हटाते हैं।

संगम तट हो या तीर्थ स्थान, गुरु या पंडा टीका लगाते हैं ।
मन की एकाग्रता,शारीरिक उर्जा, तिलक द्वारा हम पाते हैं।

अंगुठे से होती मोक्ष प्राप्ति, तर्जनी से शत्रु विनाश है।
धन प्राप्ति हेतु मध्यमा, अनामिका से शान्ति प्राप्त है।

मातृभूमि की रक्षा हेतु जवान, तिलक लगा घर से जाते,
विजय-तिलक लगाया जाता, जब विजयी होकर आते।

विष्णु अनुयायी वैष्णव तिलक लगाते, शिव उपासक शैव तिलक, ब्राह्मण ब्रह्म तिलक लगाते, राजाओं का होता राजतिलक।

हे देवी!सरस्वती,लक्ष्मी,अम्बे और माता काली।
तेरी शरण में मैं आऊँ, भक्ति में होकर मतवाली।

मन रूपी कुमकुम रुधिर से, तिलक लगाऊँ मैं जननी।
बुद्धि,ज्ञान,धन की दाता माता, करती रहूँ मैं अच्छी करनी।

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