Picture by: wallpapercave.com मैं अयोध्या नगरी धरोहर इतिहास की, भारत माता की संरचना हूँ।
मैं जन्मभूमि सूर्यवंशी राम प्रभु की, गाथाओं की रचना हूँ।
सूर्यवंशी, रघुवंशी राजाओं का, देखा मैंने प्रभुत्व है।
पालने झूलाती माताओं का, देखा मैंने मातृत्व है।
ब्रह्मा जी के प्रपौत्र वैवस्वत ने, सतयुग में मेरा निर्माण किया।
वैवस्वत पुत्र इक्ष्वाकु राजा ने, राजधानी मुझे बना लिया।
राजा सगर पुत्रों तारण हेतु, प्रपौत्र तपस्वी भागीरथ गंगा को लाए।
विष्णु चरण से, ब्रह्म कमण्डल में, शिव जटा से गंगा धरा पर आए।
रघु बङे तेजस्वी राजा, सूर्यवंशी रघुवंशी भी कहलाए।
जैन धर्म के तीर्थंकर निमि, इसी कुल में जन्म पाए।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, वचनबद्ध हो प्रतिज्ञा निभाई।
रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई।
सतयुग में वैवस्वत राजा ने, अयोध्या की, की स्थापना ।
त्रेता युग में राजा दशरथ ने, भगवान विष्णु से की आराधना।
वशिष्ठ मुनि राज पुत्र प्राप्ति हेतु, यज्ञ पुरुष से की प्रार्थना।
यज्ञ से निकला खीर का कलश, पुत्र प्राप्ति की थी कामना।
राजा दशरथ ने खीर के कलश का, रानियों में विभाजन किया।
आधा मिला कौशल्या को, आधा कैकयी को दिया ।
दोनों ने मिल आधा-आधा, सुमित्रा को बाँट दिया।
तीन रानियों की कोख से, चार पुत्रों ने जन्म लिया।
कौशल्या के नन्दन राम, कैकयी के भरत ललना ।
लक्ष्मण-शत्रुघ्न सुमित्रा नन्दन, चारों भाई झूले पलना।
अवतरित अवधेश हुए, दशरथ नंदन जय श्री राम।
आनन्दित अयोध्या नगरी, चारों भाई अति अभिराम।
इत उत डोले माँ कौशल्या, कैकई, सुमित्रा हर्षाये।
ईश्वरीय आशीष अनोखा, गुणवान पुत्र चारों पाये।
उत्सव,उल्लास मच्यो अयोध्या में, घर-घर बटत बधाई।
ऊँचे चढ़े सूर्य अवध में, सूर्य वंश ने वृद्धि जो पाई।
ऋषि वसिष्ट ने किया नामकरण, राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न।
चारों शिक्षा पाये गुरूकुल में,
साधु-संत के टाले विघ्न।
एक दिन राम लक्ष्मण को लेने, विश्वामित्र ऋषि आ गए।
ऐसे कैसे भेजूं पुत्रों को, राजा दशरथ घबरा गए।
ओ वीर राजकुमारों तुम! यज्ञ की रक्षा करो !!
औचित्य समय जान के, राक्षसों का वध करो।
अंग स्पर्श हुआ शिला से, पत्थर की बनी नारी।
आ:हा :श्री राम चरणों ने, शापित ऋषि नारी तारी।
भूजा जनक लली सीता, शिव धनुष था भारी उठा लिया।
विदेह राजा ने मन ही मन, सीता स्वयंवर का संकल्प लिया।
पुरुष वीर, शिव धनुष उठाने, देश-विदेश से आमंत्रित हुए।
विश्वामित्र राम लक्ष्मण को ले, जनकपुरी में प्रस्तुत हुए।
बड़े-बड़े नृप हार बैठे, शिव धनुष ना हिला सके ।
गुरु आज्ञा पा, राम प्रभु, धनुष प्रत्यंचा चढ़ा सके।
धनुष टँकार सुन परशुराम, राज्यसभा में प्रस्तुत हुए।
लक्ष्मण संग संवाद कर, राम आगे नतमस्तक हुए।
वरमाला कर ले जानकी, नज़रें झुका शर्मा गई।
राम रूप में मिला विष्णु वर, सीता रूपी लक्ष्मी हर्षा गई।
राजा दशरथ विवाह का पा निमंत्रण, बनकर आये बाराती।
राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, उर्मिला, माण्डवी, श्रुतकीर्ति।
चारों भाई परण अयोध्या आए, घर-घर में खुशियां छाई।
कौशल्या, कैकई, सुमित्रा हरखे, सासू की पदवी पाई।
बधावा गावे,आरती उतारे, अयोध्या के लोग लुगाई।
अयोध्या नगरी सजी दुल्हन सी, चार दुल्हन जो घर आई।
राम राज्य की हुई तैयारी, वशिष्ठ मुनि राज्यसभा में पधारे।
कैकई के कान भरी मंथरा, राम चौदह वर्ष वनवास स्वीकारे।
भरत का हो राज तिलक, कुटिल चाल में फँसे दशरथ बेचारे ।
मात पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर, राम, लक्ष्मण, सीता वन को सिधारे।
कैकई कलंकिनी बोझ तले दब, रावण वध हेतु राम को वनवास दियो।
गुप्त रखी यह बात हृदयतल, जन-जन को अपमान सह्यो।
राम प्रिय भरत से ज्यादा, असहनीय निर्णय कैकई लियो।
दशरथ प्राण तजे पुत्रमोह वश, राष्ट्र हित कैकई वैधव्य सह्यो।
चौदह बरस बनवास काल में, ऋषि मुनियों संग शिक्षा ग्रहण किये।
भगवाँ वेश में, तपस्वी सी जटाँए, राम पूर्ण भारत में भ्रमण किये।
आदिवासी, वनवासी समाज को, धर्म मार्ग पर चलना सिखाए।
तृण झोपड़ी, तृण शैय्या, तपस्वी सा जीवन बिताए।
तमसा पार कर पहुँचे श्रृंगवेरपुर, निषादराज गुह ने आदर सत्कार किया।
केवट ने चरण धोए प्रभु के, नाव से गंगा पार किया।
सीता माँ ने दी उतराई, केवट ने इन्कार किया।
पार किया मैंने प्रभु आपको, भवसागर पार करने का वादा लिया।
अयोध्या समाज संग भरत चित्रकूट में, राम से मिलने आ गए।
माताओं का रूप देख, प्रभु नेत्रों में अश्रु आ गए।
विनती की भरत ने प्रभु से, वर उल्टा कर लीजिए।
राम बिन सूनी अयोध्या, अनाथ मुझे ना कीजिए।
मैं अभागा, माँ कुमति, क्यों उस कोख से जन्म लिया?
अपराध माफ करो मेरे भैया! भरत ने बहु विनती किया।
सकल समाज समझाये राम को, प्रभु लौट न आये साथ में।
चरण पादुका ले पधारे भरत, सारी नगरी साथ में।
सतना में अत्रि ऋषि आश्रम, राम वन नामक एक स्थान।
अनसूया पत्नी महर्षी अत्रि की, सीता माँ को दिया सुहाग का ज्ञान।
दण्डकारण्य मुनियों आश्रम संग रह, आगे आए अगस्त्य मुनि आश्रम।
नासिक का पंचवटी क्षेत्र, गोदावरी किनारे बनाया निज आश्रम।
शूर्पणखा की नासिका काटी लक्ष्मण, रावण की थी वह बहन।
मायामृग लेने राम चले, स्वर्ण मृग तृष्णा जगी जानकी मन।
हाँ राम !ध्वनि सुनी सीता, लक्ष्मण को पठाए जहाँ श्री राम।
साधु वेश में आ रावण, हर ले गया सीता, प्रभु परेशान।
लक्ष्मण रेखा पार कर सीता ने, रखा नहीं लक्ष्मण का मान।
दक्षिण दिशा में ले चला रावण, सीता को बिठा पुष्पक विमान।
भीलनी शबरी वन में, करती राम प्रभु का इन्तजार।
राह बुहारे, काँटे हटाए, आएँगे राम मेरे दरबार।
मीठे-मीठे बेर चुन लायी, चख-चख प्रभु को भोग लगायी।
सीता माँ का पता बता, राम चरणो में मुक्ति पायी।
सीता को ले गया रावण, उठा के आकाश विमान,
गिद्धराज जटायु लड़ा रावण से, राम को बता, तज दिये प्राण।
हा सीते! हा सीते! राम पुकारे, वन वन खोजत सीता को राम।
किष्किंधा ॠष्यमूक पर्वत पहुँचे, ब्राह्मण वेश में मिले हनुमान।
राजा सुग्रीव से कर मित्रता, बाली के लिए प्रभु ने प्राण।
वानर दल संग बढे दक्षिण दिश, सम्पाती ने दिए सीता के प्रमाण।
चारों दिशाओं में भेजे वानर, लंका तरफ भेजे हनुमान।
समुद्र लाँघ कर पहुँचे लंका, विभीषण से भेंट की हनुमान।
अशोक वाटिका में विराजे सीता, अंगुष्ठ रूप में पहुँचे हनुमान।
प्रभु द्वारा प्रदत्त मुद्रिका डाली,हरखी सीता देख हनुमान।
आज्ञा माँ की ले बजरंगी,विशाल वृक्ष तोड फल खावन लगे।
उत्पात्ति वानर देख रखवाले, इधर-उधर भागन लगे।
रावण पुत्र पराक्रमी अक्षय कुमार, हनुमान ने मार गिराया।
मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र चला, बन्दी बना हनुमत को सभा में लाया।
ब्रह्मपाँस में फँसकर बजरंगी ने, ब्रह्मा जी का मान बढ़ाया।
पूँछ प्रिय होती वानर को जान, रावण पूँछ में आग लगाया।
मंद मंद मुस्कुरा कर हनुमत, धीरे-धीरे पूँछ बढाई।
पूँछ जला कूदे घर-घर, लंका में हनुमत आग लगाई।
राम भक्त जान सुग्रीव को, भक्त का बजरंग महल बचाए।
पूँछ बुझा, लघु रूप धर, जानकी जी के पास आए।
चूड़ामणि ले माता से, उड़ चले हनुमान आकाश।
चरणों में आ गिर कर बोले, प्रभुकृपा से पहुँचा माँ के पास।
सीता की खबर प्रभु को दीन्ही, सकल वानरों की रक्षा कीन्हीं।
जाम्बवत ने आज्ञा दीन्हीं, वानर सैन्य इक्कट्ठी कीन्ही।
रामेश्वर की कर स्थापना, समुद्र से रास्ता मांगे राम।
हाथ जोड़, थर-थर कांपते, प्रकट हुए समुद्र समक्ष राम।
नल-नील पुत्र विश्वकर्मा के, पत्थर पानी में तैर जाए, वर पाए।
राम नाम लिख कर पत्थर पर, समुद्र पर प्रभु पुल बनाए।
रावण ने लात मारी भाई को, विभीषण प्रभु शरण में आ गए।
राम जी ने अभिषेक कर विभीषण का, लंका पति बना दिए।
मेघनाथ के तीर से, लक्ष्मण को मूर्छा आई।
सुखेन वैद्य ने की परीक्षा, संजीवनी बूटी मंगवाई।
होश नहीं आया लक्ष्मण को, राम मन में पछताए।
हनुमान संजीवनी का, पूर्ण पर्वत उठा लाए।
बाली पुत्र अंगद शान्तिदूत बन, रावण सभा में आ गए।
रावण का तोड़ा गुरुर, पाँव अपना जमा गए।
राम और रावण मध्यस्थ, घमासान युद्ध हुआ।
बलवान कुंभकरण और रावण सुत, सबका ही विध्वंस हुआ।
अशोक वाटिका से आई सीता, नजर थी धरती की ओर।
अग्नि परीक्षा में पास हुई, खुशियली फैली चारों ओर।
राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमंत, जामवंत और विभीषण भाई।
खुशी-खुशी लौटे अयोध्या, भरत, शत्रुघ्न करे अँगुवाई।
माताएँ उतारे आरती, अयोध्या नगरी हरखाई।
घर-घर घी के दीप जलाकर, शुभ दीपावली मनाई।
भगवान राम के स्वधाम गमन पर, सरयू नदी में आई भीषण बाढ़। अयोध्या की भव्य विरासत, हो गई वीरान, अनाथ।
भगवान के पुत्र कुश ने, देवी आज्ञा से अयोध्या का पुन:रोत्थान किया।
राम जन्म भूमि पर शानदार, आकर्षक मंदिर का निर्माण किया।
शनै:-शनै:अयोध्या जीर्ण-शीर्ण हुई, राजा विक्रमादित्य ने खोज लिया। सरयू नदी के तट पर, मनमोहक राम मंदिर बना दिया।
साकेत रूप में जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली को, भरत चक्रवर्ती के साथ जोड़ा गया।
स्कंद गुप्त ने पाटलिपुत्र राजधानी को, अयोध्या में स्थानांतर किया।
छठी शताब्दी में कन्नौज गढ़वालों ने, राम को माना विष्णु अवतार।
तीर्थ स्थलों में बढी अयोध्या की महिमा, दर्शन करने आते भक्त हजार।
सप्तपुरी में पुरी एक, अयोध्या नगरी कहलाई।
श्री राम प्रभु की नगरी, मोक्षदाता की पदवी पाई।
प्रथम मुगल सम्राट बाबर ने, बावरी मस्जिद बनने का आदेश दिया।
सेनापति अमीर बाकी ने, मंदिर तोङ मस्जिद बना दिया।
पाँच सौ साल के अथक प्रयास से, राम मंदिर की अनुमति मिली।
सारा भारत राम मय हो गया, जय श्री राम का नारा गूँजा गली गली।
इन्तजार की घड़ियाँ पूर्ण हुई, शुभ दिन यह आ ही गया।
पाँच अगस्त दो हजार बीस को, नरेंद्र मोदी जी ने भूमि पूजन किया।
सैकड़ो कार सेवकों की हिम्मत-बलिदान, बावरी मस्जिद गिराने में।
राम-शरद कोठारी बंधु, चूके ना गोली खाने में।
मस्जिद हटाकर मंदिर बनने की, हम सब की आशा पूर्ण हुई।
बाईस जनवरी दो हजार चौबीस को, प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा हुई।
वैष्णव तिलक, अद्भुत आभूषण, प्राण प्रतिष्ठित हुए राम भगवान।
आरती उतारे,भोग लगाए, नरेंद्र मोदी मंत्री प्रधान।
अयोध्या में, अलौकिक, अविस्मरणीय, अद्भुत पल।
कलियुग में त्रेतायुग सा समा,याद रहेगा भारत देश को प्रतिपल।
अयोध्या राम की राम अयोध्या के जन-जन का सपना पूर्ण हुआ।
संपूर्ण भारतीय वासियों का सहयोग, नरेंद्र मोदी जी,योगी जी द्वारा पूर्ण हुआ।
त्रेता युग में एक रावण,राम जी ने मार उद्धार किया।
धोबी के वचन सुन राम ने,गर्भवती सीता का त्याग किया।
कलयुग में अनेको रावण, इतने राम कहाँ से आए?
अन्तःकरण शुद्ध हो जाए, रावण स्वत: ही मर जाए।
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