नव यौवना की बोझिल आँखों में, इंद्रधनुषी स्वप्न सजे।
नवजीवन की नई कामना के,रंग बिरंगे फूल खिले।

नया उजाला,नव प्रकाश,जीवन में भर जाएगा।
डोली उठेगी पीहर से ससुराल अंगना हर्षाएगा।

प्यारे प्रीतम से,मिलन बेला में,मन उतावला हो जाएगा।
धड़कन बढ़ेगी जब दिल की,चाँद देख मुस्कुराएगा।

नए जीवन की कल्पना,कोमल कली का सपना होता।
अपने अपने भाग्य का फल,हर किसी को प्राप्त होता।

सावन की पहली फुँआर से,जब धरा महकाती है।
खुशबू फैलती चहूँ ओर,मन बड़ा मदकाती है।

भाद्र मास में सखी सहेलियाँ,तीज के गीत गुनगुनाती है।
झूला झूलती राधा कृष्ण सम, जोड़ी अपनी सजाती है।|

सखियों संग स्वप्न दोहराती,बड़ी खुशी से झूमती है।
मात-पिता की आज्ञा पाकर,धूम से शादी रचाती है।

पढ़ लिख कर जो बनी सयानी,पति प्यार की दीवानी है।
आज्ञा मानती सास-ससुर की,नहीं करती आनाकानी है।

अपने भाग्य की कर सराहना,बड़ी खुशी से झूमती है।
काले मन पर सफेद आवरण,समझ नहीं वह पाती है।

हृदय से चाहने वाला साथी,ह्रदय विहीन बन जाता है।
सपने दिखाता नवजीवन के, झूठ साबित हो जाता है।

संगी साथी सब मिलकर,उसकी इज्जत लूट लेते हैं।
परवश,आधीन,समझ नारी को, उत्पीड़ित कर देते हैं।

प्यार पर कर के भरोसा, धोखा उसने खाया है।
पर जीवन जीने की कला को,उसने नहीं गँवाया है।

पराया कोई धोखा दे जाता,पति परमेश्वर माना जाता है।
आज के इस कलयुग में सच्चा,नहीं रहा कोई नाता है।

उठाए कदम बढ़ चली आगे,आज शिखर वो छू रही है।
उत्पीड़ित यौवन की गाथा,नहीं कभी वह भूल रही है।

भगवान ना करे कोई बाला,बस जीने को मजबूर हो।
हर्ष उल्लास से बीते जीवन,सपने यूँ न चकनाचूर हो।

कमजोर,कोमल समझ नारी को,यूँ ना उत्पीड़ित करो।
काली रूप धर आएगी जननी,उसके त्रिशूल से तो डरो!!

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