उत्तराखण्ड उत्तरकाशी,सिलक्यारा सुरंग जिसका नाम।
दिन-रात मेहनत मजदूरी करना, श्रमिकों का रोज का काम।
दीपावली मना रहा था भारत,सुरंग में थी वह काली रात।
चारों ओर फैल सन्नाटा,सन्नाटे में पत्नी,पिता और मात।
धैर्य धर,शांत चित्त,रहे होंगे कैसे श्रमिक लोग उस रात।
अचानक सुरंग में फँस जाना,ना देखा दूसरे दिन का प्रभात।
सोचा क्या यही था? ना पहुँचेंगे वह लोग आज घर।
सत्रह दिन रहना पड़ेगा ,होगा ऐसा लम्बा सफर।
याद आई उस समय प्रभु की,और नहीं कोई दूजा साथ।
इकतालीस मजदूरों ने,एक दूजे का थामा हाथ।
जिला प्रसाशकों ने बाहर,सुरंग का निरीक्षण किया।
कैसे बचाएँ मजदूरों को,रेस्क्यू अभियान का जायज़ा लिया।
दिन-रात की मेहनत से,थोड़ी-थोड़ी सफलता मिली।
मलबा हटाया,मार्ग बनाया,श्रमिकों को तसल्ली मिली।
नवे दिन ऑपरेशन अधिकारी,बोले बड़ी खुशी की बात।
प्रयास रहेगा जारी,हम होंगे अवश्य कामयाब।
मलबा हटा शनै:शनै:,चार इंच की बनी पाइप लाइन।
छह इंच की पाइप लाइन से,बनी श्रमिकों की लाइफ लाइन।
अन्दर-बाहर दोनों ओर,संघर्ष था जारी।
उम्मीद की किरणें चमकी,जिन्दगी नहीं हारी।
कहीं सुरंग और ना धँस जाए,चटकन की आवाज सुन डर गए लोग।
दहशत का माहौल फैला,परेशान अधिकारी श्रमिक लोग।
सफलता मिलना सरल नहीं था, कठिनाई आई पग पग पर।
राह के रोङे हटाये,अघिकारियों ने डग-डग पर।
रेडियो बना संसाधन,मजदूरों से जुड़े अधिकारी।
जरूरी सामान भेज,दिखाई अपनी समझदारी।
धीरे-धीरे,शनै:-शनै:,पाइपलाइन चौड़ी करते गए।
बाहर निकलेंगे सभी श्रमिक,श्रमिकों को आश्वासन दिए।
बाहर की दुनियाँ की बातों से, श्रमिकों को राहत मिली।
कभी नहीं सोचा था,ऐसी होगी उनकी दीपावली।
बाहर खड़े परिजन,परिजन से,पाइप से बात कर सकते ।
अपने मन की कथा व्यथा,एक दूजे को कह सकते।
वक्त बुरा आया है भाई ! यह भी चला जाएगा।
याद करो उस प्रभु को,वही दु:ख में काम आएगा।
मलबा फैला था भारी,समय लगा हटाने में,
जान बच गई थी सबकी ,खुशी थी बाहर आने में।
बड़ी-बड़ी मशीनों के जरिए,इंजीनियरों ने काम किया।
सत्रहवें दिन मिली सफलता,श्रमिकों को बाहर निकाल लिया।
रविवार को हुआ हादसा,सत्रह दिन बाद मंगल हुआ।
मंगल को मंगल कामना से, घर-घर में मंगल हुआ।
एक पुत्र आ मिला मात से,
माँ बोली,अब ना करोगे यह काम।
कर्म करना ही मेरी पूँजी,रक्षा करेंगे मेरी राम।
पत्नी बोली पति से,कैसे काटे वह दिन?
कभी तङपन,कभी उम्मीद,करता हृदय में प्रभु दर्शन।
छोटे पुत्र और पुत्री,गले मिल बिलखने लगे।
इतने दिन दूर न जाना पापा, फूट-फूट रोवन लगे।
बहना बोली मेरे भाई,भाई दूज को बहुत याद किया।
रक्षा करो मेरे भैया की !,प्रभु ने इन्साफ किया।
भाई गले लगा भाई के,तुम राम सम मेरे भाई।
लक्ष्मण बिन कैसे रहे सुरंग में,याद मेरी क्या नहीं आई ?
पिता की व्यथा थी निराली,परिवार पूरे को समझाया।
बुझने न पाए,आशादीप के,पुत्र को गले लगा चिपकाया।
मैं सोचती हूँ अगर,हम कहीं उस मुसीबत में फँस जाते।
श्रमिकों के धैर्य समान,क्या धैर्य से रह पाते?
कितनी वेदनाओं को सहते,निर्वाह कैसे कर पाते।
एक मिनट लिफ्ट ना चले अगर,हम बंद लिफ्ट में घबरा जाते।
कभी मेट्रो रेल रुक जाए,पसीने पसीने हम हो जाते ।
कहीं धमाके की आवाज सुनते, हम अन्दर तक काँप जाते।
सुरंग धँसी,श्रमिक फँसे,पर जीवन की आशा नहीं छोड़ी।
हिम्मत दिखाए, धैर्य धारे,तभी प्रभु ने डोरी नहीं छोङी।