Photo by Marc-Olivier Jodoin on Unsplash
विधाता ने जो विधना बनाई,सब मन को लुभाती है।
दिन जाने के बाद न जाने,रात कैसे आती है?
बिन खम्भे आकाश खड़ा है,उड़ते पक्षी गगन में हैं।
कैसे पानी बीच धरती टिकी,अचम्भा मेरे मन में हैं?
हर एक वृक्ष की अनोखी रचना,समझ नहीं आती है।
अनार,अँगूर,अन्नारस,आम की,बनावट कैसे हो जाती है?
रंग बिरंगे फूलों को देख,मन हरा भरा हो जाता है।
ऐसे सुरमयी रंग इसमें,न जाने कौन भर जाता है?
नाना प्रकार की होती सब्जी, हरी,बैंगनी,पीली,लाल।
भाँति-भाँति के स्वाद निराले,किसने इसमें दिये है डाल?
मातृगर्भ में शिशु पलता,कितनी अनोखी रचना है।
जन्म से पहले दूध व्यवस्था,किस की यह संरचना है?
कृृषक खेतों में बीज डालते,खेती लहलहाती है।
तरह-तरह के अन्न की रचना,देखो कैसे हो जाती है?
अपना उदर भरने हेतु प्राणी,दर-दर भटकता है ।
निर्जीव पशु वध कर खाना,कैसे पेट में पचता है?
कर्मों की गति है निराली,कर्मों का फल मिलता है।
पंचतत्व में विलीन होती देेख काया,मानव फिर भी न सम्भलता है?
मानव मस्तिष्क सोचता रहता,कहाँ से आया कहाँ जाऊँगा ?
प्रभु की अनोखी दुनियाँ के,कितने चक्कर लगाऊँगा?