व्यवस्थित विधि विधान को,विघटित करना ठीक नहीं।
कुपित हो काँपती धरती, विभक्त प्रकृति ठीक नहीं।।
राधा कृष्ण जुगल जोड़ी, रुक्मणी बनी पटरानी है।
राम के अश्वमेध यज्ञ में, मिट्टी की प्रतिमा सीता रानी है।।
त्रिलोकी विधि विधान वश में, होनी होवे सो होवे।
मूर्ख, अज्ञानी हम मानव, मूर्खतावश हो रोवे।।
नदियाँ, सागर, वायु, बारिश, चाँद, गगन, धरती सब व्यस्त।
सूर्योदय होता पूरब से,पश्चिम में होता है अस्त।।
विधि के विधान को, विधाता टाल नहीं सकता।
ऐसा होता श्रीकृष्ण हाथ में, अभिमन्यु कभी नहीं मरता।।
दुर्वासा के शाप से,यदुकुल हुआ निर्वंश है।
वश में द्वारकाधीश के होता, बचाते अपना वंश है।।
राजादशरथ की प्रबलइच्छा,राजतिलक का दिन चयन किया।
कैकयी की कुटिल चाल से, सीता-राम ने वन गमन किया।।
लख घोडा, लख पालकी, राज-पाट था बड़ा विशाल।
सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, विधि विधान सके ना टाल।।
स्वयंवर में मत्स्यभेदन कर,अर्जुन आए द्रौपदी जीत,
विधना वंश माँ की आज्ञा,पाँचों पाण्डव बने पाँचाली प्रीत।।
हानि-लाभ,जीवन-मरण,सब विधि का विधान है।
कार्य कोई अनोखा कर,मानव समझता स्वयं को महान है।।

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