हे उत्तरा !तेरा मेरा मिलन, मात्र एक संयोग है ।
दूरदर्शिता समझा रही मुझे,अब जल्दी अपना वियोग है।
ऐसा ही है,सुन प्राण प्रिये! महाभारत की जो हुई है रचना।
मात्र पृथ्वी के टुकड़े खातिर, जन-जन को पड़ेगा मरना।
मैं तेरा अपराधी हूँ प्रिये! तुझे छोड़ जा रहा हूँ।
हाय विधाता की लेखनी! बदल नहीं पा रहा हूँ।
दुश्मनों से लूटा जाता, इतना न शायद होता गम।
धोखा खाया अपनों से, आँखें तुम करना ना नम।
निज पक्ष की रक्षा खातिर ,अपनी जान गवाँ रहा हूँ।
मैं क्षत्रिय, वीर योद्धा, शहीद होने जा रहा हूँ।
तुम हो मेरी प्राण प्रिये! मेरे अंश की रक्षा करना।
पुत्र हो या हो पुत्री, लालन-पालन तुमको करना।
मेरे वियोग के दु:ख में, आँसू ना बहाना प्रिये!
कार्य अधूरा छोड़ा जो मैंने, सहर्ष पूरा करना प्रिये!
अभिमन्यु जैसे योद्धा, आज भी जान गवाँ रहे हैं ।
मातृभूमि पर हो न्यौछावर, अपनी माँ को रुला रहे हैं ।
ऐसे महान ह्रदय वालों को, करती हूँ दिल से नमन ।
देश रक्षा के खातिर,उजाड़ लेते जो अपना चमन।