एक दिन कहीं से मैंने
एक बीज पाया वृक्ष का ।
व्यर्थ उसे करना न था मुझे,
काम में लेना अर्थ था ।।
मैं दौड़ी ,आई घर में;
खोजी एक मिट्टी की हांडी ।
मिट्टी डालकर; बीज बो दिया,
कुछ दिनों में निकली एक डांडी ।।
डांडी देख मन हरषाया!
क्या मैंने भी वृक्ष लगाया है?
कुछ समय बाद बीज से,
पत्तों को भी पाया है।।
मेरी खुशी का अंत नहीं था ।
वह पेड़ निकला एक नीम का !
नीम जो हवा शुद्ध करता,
काम करता हकीम का ।।
मेरे मन की बगिया की
बढ़ रही खुशी अपार थी ,
एक बीज से पेड़ अनेकों,
मेरी बगिया में बहार थी ।।
पेड़ चाहे पीपल का हो
या हो तुलसी वृक्ष यहां ।
प्राण जीवन देते हमको सब
वृक्ष लगाएं हम जहां तहां ।।
एक गमला हो या हो उपवन
वृक्ष कहीं भी लग जाता है।
रखवाली अगर करें हम,
काम हमारे आता है।।
फल, फूल, छाल और छाया,
वृक्ष से ही मिल पाते हैं।
वायु दूषित होने से बचाते
धरा को स्वर्ग बनाते हैं।।
सजे हुए भी सुंदर लगते,
शोभा बढ़ाते उपवन की;
अन्नदाता वृक्ष हमारे,
खिलाते कली यह हर मन की ।।
ईश्वर दर्शन इनमें कर पाते;
पूजा करते हम इनकी,
वृक्ष काटकर पाप करे ना ,
महिमा पहचाने वृक्षों की । ।