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“हंसना, मुस्कुराना और खिलखिलाना, ज़िंदगी जीने का है खूबसूरत बहाना,
ये जीने की कला तुम अवश्य आजमाना, फिर देखना, कैसे क़दमों तले झुकेगा ज़माना।“
ये ज़िंदगी भी अजीब होती है,
कभी किसी को खुशी के सातों रंगों से सराबोर कर देती है, तो कभी गम की काली स्याही में डुबो देती है,
कभी देखो तो यहां मौसम खुशगवार-सा है,
चारों ओर हसीं वादियों की बहार-सी है,
कभी गम के काले साए हैं,
भय की परछाइयाँ हैं और जहां नज़र डालो, वहां सिर्फ और सिर्फ तन्हाइयां हैं।
ज़िंदगी हर कदम पर नया सबक सा दे जाती है,
वक्त-वक्त की बात है,
यह चाहे तो किसी को फर्श से अर्श पर तो किसी को अर्श से फर्श पर भी ला सकती है,
ज़िंदगी के रंगोढंग भी अजीबोगरीब होते हैं,
कभी तो हम किसी से निहायत ही दूर और कभी इतने करीब होते हैं,
इस ज़िंदगी से क्या शिकवा करें, क्या शिकायत करें,
कभी तो चलते यहां धूल -आंधी और अंधड़,
और कभी यहां होता हिमपात और शीत का उपद्रव,
कभी निपट खामोश कभी बेताब तो कभी निरी बेबाक,
ज़िन्दगी नित नए ख्वाब संजोती है,
इस मासूम सी ज़िंदगी का पल-पल भी भारी लगता है,
और कभी-कभी यूं लगता है कि ज़िंदगी मुठ्ठी में से रेत की मानिंद खिसकती जाती है,
कभी ये ठंडी शीतल छाँह है,
तो कभी मुसीबतों और कयामतों का अथाह अम्बार है,
कभी लगता यहां जीना दुश्वार है,
तो कभी यूँ लगता है कि ज़िन्दगी केवल मेला और खुशियों का कारोबार है,
कभी गीत है, नृत्य है और संगीत की पाठशाला है,
कभी अपनी तन्हाई से ही प्रतीत होती प्रीति है,
अपने दुःख का अचल साथी है ये,
और यूँ लगता है कि यही अपने एकाकी जीवन का साथी है,
हमसफ़र और मीत है,
ज़िन्दगी धूप और छाँह का अजब कलोल है,
कभी सुख दुःख कभी खुशी और गम, कभी अंधेरे और उजाले तो कभी सफलता और असफलता का जब संयोग यही,
आशा और निराशा की अजीब दास्ताँ है,
ये ज़िंदगी कभी एहसानफरामोश है, तो कभी ये मेहरबान है,
यह ज़िंदगी धोखेबाज़ों की और जालसाजों की भी है,
पर मत भूलिए कि यही ज़िंदगी की तल्ख़ सच्चाइयां हैं,
जो इनसे रूबरू होता चले तो ये मीठी सेवइयां सी हैं,
और कायरता का रुख अख्तियार कर लें, तो यही रूसवाइयां भी हैं।

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