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ये बड़ी विडंबना की बात है कि तीनों लोकों के स्वामि 'श्री राम' अपने ही घर में बेघर रहें. जहां त्रेता युग में प्रभु श्रीराम को 14 साल का वनवास हुआ था. वहीं इस कलियुग में तो उन्हें 500 सालों का वनवास झेलना पड़ा. लेकिन आज बुधवार को ये सपना साकार होने जा रहा है जिसके लिए लाखों लोगों ने अपनी ज़िंदगी की बलिदानी दीं. हमारी पीढ़ी ये कह सकती है कि हमने अपने आराध्य राम को टेंट के मंदिर से भव्य राम मंदिर में विराजमान होते देखा हैं.

"राम राज बैठें त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप बिषमता खोई॥"

रामचरितमानस के इस चौपाई का आधुनिक अर्थ यह है कि श्री रामचंद्रजी के प्रतिष्ठित होने पर सर्वत्र खुशियों का माहौल कायम होगा. लोगों के सारे शोक खत्म हो जाएंगे. लोगों में वैर भाव खत्म होकर आपसी सौहार्द व सद्भाव बनेगा. श्री रामचंद्रजी के प्रताप से सबकी विषमता यानी आंतरिक भेदभाव मिट जाएंगी और धरती पर रामराज्य कायम होगा.  enter image description here   परंतु आज के पीढ़ी को इस बात से भी अवगत होना चाहिए और सोचना विचारना चाहिए कि प्रभु 'श्री राम' तो शाश्वत हैं, परमात्म स्वरूप हैं, ब्रह्म हैं, सारा जगत ही उनका मंदिर है तो फिर अयोद्ध्य मे किसका मंदिर बन रहा है, क्या भगवान राम का, क्या राजा रामचन्द्र जी का, या फिर भाजपा के जय श्री राम का?

इन सभी सवालों का जवाब मैं तर्क सहित प्रस्तुत कर रहा हूं-

क्या भगवान राम का?
नहीं, क्योंकि वे अजन्मा हैं, शाश्वत हैं, परमात्म स्वरूप हैं, ब्रह्म हैं, सारा जगत ही उनका मंदिर है. वे सब जगह विराजमान हैं, चन्द्र तारों में, सूर्य में, पृथ्वी जल आकाश अंतरिक्ष मनुष्य पशु प्राणियों फूल पत्तियों और जगत के कण कण में हैं. सम्पूर्ण अयोध्या और वहां के अन्य मंदिरों में तो वे हैं हीं, इसलिए उन्हें मंदिर की जरूरत नही है.

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क्या राजा रामचन्द्र जी का?
नहीं, क्योंकि पृथ्वी पर कई राजा आये और गए, बड़े बड़े सम्राट आये और गए, सब अपने आलीशान महलों, किलों, इमारतों को यहीं छोड़के चले गए जिनके कुछ अवशेष अभी भी खंडहरों के रूप में मौजूद हैं या फिर जमीनों के अंदर दफन हैं. अब उन पर सरकारों का कब्जा है और वे पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं हैं.

क्या भाजपा के जय श्री राम का?
नहीं, क्योंकि इस मंदिर के लिए पिछले 500 सालों से अब तक लाखों लोगों ने लड़ाइयां लड़ी हैं और अपनी जानें गंवाई है, आज भी विश्वभर में करोड़ों करोड़ों गैर राजनीतिक हिंदू भी इस मंदिर को बनाने के लिए अपना अपना योगदान दे रहे हैं और इसका बन जाने का पूरे हृदय से इंतजार कर रहे हैं. जिसका सपना वो कई वर्षों से देखते आ रहे हैं.

तो फिर ये मंदिर बन किसका रहा हैं?
यह मंदिर बन रहा है हिंदू अस्मिता का जिसे सैकड़ों वर्षों से रौंदा जा रहा था. हिंदू आत्म सम्मान का जिसे लगातार ठेस पहुंचाई जा रही थीं. उदार हिंदुओं की गरिमा और गौरव का जिसे आतताइयों ने कभी बेरहमी से कुचला था. यह मंदिर हिंदू पुनर्जागरण का प्रतीक है. हिंदू पुनरुत्थान की उद्घोषणा है. हिंदू आत्म विश्वास के पुनः उठ खड़े होने का सूचक है. प्राचीन अस्त हिंदू सभ्यता के उदय होने का शंखनाद है.

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लाखों हिंदू-सिक्ख-जैन-बौद्ध बलिदानियों के लिए श्रद्धांजलि है ये मंदिर! ये मंदिर उन परमपिता परमेश्वर श्री राम का मंदिर है जो प्रत्येक हिंदू के हृदय में इस श्रद्धा विश्वास के रूप में विधमान थे कि एक दिन उनका भी दिन आएगा और वे पुनः अपनी खोई हुई शक्ति दर्प और स्वाभिमान को वापस प्राप्त कर लेंगे.

अंत में सभी श्री राम भक्त हिंदुओं से अपील है कि वे भूमि पूजन के दिन अपने अपने घरों में रामायण का पाठ करें, धूप व घी के दिए जलाएं, शंखनाद करें, घंटियां बजाएं, कीर्तन भजन करें ढोलक मृदंग चिमटा खड़ताल डमरू इत्यादि जो कुछ भी जिसके पास हो वह बजाएं ताकि पूरी दुनियां को संदेश जाए कि हिंदू जाग गए हैं. हिंदुओं के एक नए युग का श्री गणेश हुआ है भारत में!

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