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वो भारत जिसने श्रीराम दिए, श्रीकृष्ण दिए, वो गुरुकुल वो शिक्षा पध्दति जिसने चाणक्य,वशिष्ठ,संदीपनि,बाल्मीकि,गौतम, विश्वामित्र जैसे गुरु और चन्द्रगुप्त, अर्जुन जैसे शिष्य दिए। भारत में आज बच्चे वो शिक्षा पा रहे हैं जो ना उनके किसी काम की है और ना ही सही है। हमारी शिक्षा में इतना अंतर कहाँ से आया?? कहाँ भारत को सोने की चिड़ियाँ बनाने वाली शिक्षा अब ऐसी हो गयी है की भारतीय युवा नौकरी के लिए दर दर भटक रहा है!

वैदिक पध्दति में संस्कृति पर केंद्रित था। वेद ,उपनिषद, धर्म शास्त्र सब पढ़ाये जाते थे। वैदिक शिक्षा पध्दति का मूल भाव अंदर व् वाह्य दोनों तरफ समग्र विकास करना था। जिसमे सिद्धांत, ईमानदारी, संयम, धैर्य के गुण विकसित किये जाते थे। यह व्यस्था गुरुकुल में ही पल बढ़ सकती थी जहाँ शिष्य गुरु के साथ खुले आकाश के नीचे शिक्षा प्राप्त करते थे और दुनिया से अलग रहते थे। इस शिक्षा पध्दति में राज्य सरकारों की कोई भी जिम्मेदारी नहीं थी, सभी चीजें गुरु ही चयनित करता था। सभी शिक्षा मुफ्त में दी जाती थी। पढाई से लेकर रहने खाने का वहन गुरु ही करते थे। कभी कभार राजा महाराजा और धनी लोग वहां दान देते थे। जिससे ये सब सुचरु रूप से चलता था। शिष्य गुरु के साथ रहकर औपचारिक और अनौपचारिक दोनों पध्दति से चीजे सीखते थे। गुरु के उच्चतम व्यव्हार को वो अनुसरण करते थे। इस आदर्श व्यव्हार के कारण ही श्री राम, कृष्ण, अर्जुन, चाणक्य जैसे महान लोग मिले। इस शिक्षा में कई चरण में मानसिक और शाररिक विकास किया जाता था।

इसी चरण के भाग वेद, वेदान्त, दर्शन शास्त्र, उपनिषद, योग होते थे। व्याकरण, गणित पर भी ध्यान दिया जाता था। इसी समय युद्ध, इतिहास, भूगोल, राजनीती, ज्योतिष, और धर्म की शिक्षा दी जाती थी।

ऐसे ही नहीं कहा जाता की गुरुकुल में श्री कृष्ण ने चौसठ कलाएं सीखीं थी। ये चौसठ विषय थे जैसे :- नृत्य, संगीत, राजनीती शास्त्र, स्वर्ण शास्त्र, युद्ध अभ्यास इत्यादि। गुरुकुल में बहुत तरह की भाषएं भी सिखाई जाती थी। उस समय किताब नहीं थी तो श्रुति परंपरा के अनुसार चीजों को समझ के याद करतें थे और पीढी दर पीढी आदान प्रदान करते थे। पढाई का तरीका श्रवण और मनन था। इस पध्दति से बहुत ही ज्ञान से ओत प्रोत हो जाते थे।प्रत्येक गुरुकुल अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध था। कोई धनुर विद्या तो वैदिक ज्ञान तो कोई खगोल विज्ञानं तथा ज्योतिष में दक्ष था। गुरुकुल में छात्रों का आठ साल होना अनिवार्य था। और पच्चीस साल तक शिक्षा प्राप्त कर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे।

लोग कहते हैं की औरतों के लिए गुरुकुल नहीं था। तो खुद सोचिये की गार्गी, लोकमुद्रा, इन्द्राणी ये ऋषिकाएँ कहाँ से आयी ? लड़कियों को भी गुरुकुल में पढ़ने की आजादी थी। उनका उपनयन संस्कार होता था उच्च शिक्षा के लिए वह लोग नालंदा, तक्षशिला में जाते थे! बख्तियार खिलजी ने इस विश्व विधालय को ख़तम करने की ठानी और बहुत से गुरुओ की हत्या करवाकर इसने नालंदा में आग लगवाने का आदेश दिया। कहतें हैं की इसमें इतनी पुस्तकें थी की तीन से छह माह तक जलती रहीं , और जिसने यह सब किया उसको हम सम्मान देतें हैं । उसके नाम से रेलवे स्टेशन है। मुग़ल काल में अपने बहुत से विश्व विधालय के गुरु मारे गए और मक्का और मदरसे बनें। इसी तरह ब्रिटिश काल में भी यही हुआ। जो बचा था वो मेकाले ने आकर इंग्लिश पध्दति में ख़राब कर दिया। एक देश एक राष्ट्र तब कमजोर होता है जब अपनी जड़ से दूर हो जाता है। शिक्षा वह है जो इंसान और समाज दोनों को बना सकती है। आज भारत में बच्चों को रटना पड़ता है। अपने लगाव से बाहर के विषय लेने पड़ते हैं । उन्हें एक असंतुलित पध्दति से गुजरना होता है। उनको बस अच्छे अंक लाने होते हैं , और आगे यही उनकी अच्छी नौकरी में तब्दील हो जाता है। राष्ट्र विकास, राष्ट्र का पोषण, देश की रक्षा ये सब विचार तो बहुत दूर रही संदूक में बंद होकर रहा जाते हैं...

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