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सुदूर दक्षिण राज्य में समुद्र के तट पर एक छोटा सा गांव दासरपाल्ली बसा था। आस पास समुद्र ही समुद्र था। यहाँ के लोगो का मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना और उन्हें पास के शहर में बेचना था। जिससे जो भी अर्जन होता उससे वे शहर से रोजमर्रा के समान भी शहर से खरीद लाते। बस यही यहा के लोगो की दिनचर्या थी। सभी बहुत खुश थे। वहा पर रामप्पा नाम का एक मछुआरा भी उसी गांव में रहता था। उसके पास एक छोटी सी नाव थी। जिससे वो रोज मछली पकड़ने जाता था। एक दिन सुबह सुबह मछली पकड़ने के लिए समुद्र में निकला। उसने अपना जाल फेंका थोड़ी देर बाद समेटने लगा। जाल उसे बहुत भारी लगा। उसने सोचा की बहुत मछलियां आज जाल में फंसी है। और वह जल्दी जल्दी जाल समेटने लगा। परंतु जाल में सिर्फ एक बड़ी सी मछली फंसी थी। रामप्पा ने देखा कि मछली के मुंह में कुछ वस्तु अटकी हुई है जिससे मछली बहुत तड़प रही थी। उसने घायल मछली को अपनी नाव पर लिया और देखा था उसके मुंह में एक पीली थी कठोर धातु की कोई वस्तु अटकी हुई थी। उसने बड़ी सावधानी पूर्वक उसे निकाला और मछली की घायल अवस्था को देख उसे दया आ गई। उसने मछली को वापस समुद्र में छोड़ दिया। मछली भी वापस समुद्र में चली गई। रामप्पा भी घर आ गया। घर आकर रामप्पा ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई। और वह पीली धातु की वस्तु भी पत्नी को बताई। उसकी पत्नी समझदार थी देखते ही समझ गई की वह जो वस्तु है कोई स्वर्ण की मुद्रा है। पत्नी मुस्कुराई और बोली हमारे अच्छे दिन आ गए ये स्वर्ण मुद्रा है इसे हम किसी सुनार को बेचेंगे, जिससे हमे बहुत पैसे मिलेंगे। जिससे आप अपने लिए नई बड़ी नाव ले लेना। बाकी बचे पैसे से हम घर बनाएंगे। पर रामप्पा ने बहुत सोचने के बाद पत्नी से बोला कि ये हमारी मेहनत की कमाई नहीं है अतः इसे हम सरकार के खजाने में जमा करवा देंगे। बहुत नोक झोंक के बाद पत्नी ने उसकी बात मान ली। और दोनो स्वर्ण मुद्रा लेकर पास ही के पुलिस थाने पहुंचे। थानेदार साहब को सारी बात बताई। और अपनी ईमानदारी का परिचय देते हुए स्वर्ण मुद्रा अधिकारी को सौंप दी। दोनो वापस अपने घर आ गए। कुछ दिनों बात कुछ पुलिस वाले रामप्पा के घर आए। बोले, आपको जल्दी ही थानेदार साहब ने बुलाया। रामप्पा और उसकी पत्नी डर गए। पुलिस वालो के साथ थाने चले गए। थानेदार साहब से मिले तो उन्होंने बताया कि एक सरकारी जहाज कुछ ही दिनों पहले तूफान के कारण समुद्र में रास्ता भटक गया और डूब गया है। थानेदार साहब ने रामप्पा से उस जगह ले चलने की बात कही। दूसरे दिन थानेदार साहब, रामप्पा और कुछ गोताखोर समुद्र में उस जगह जाने को तैयार हो गए। और उस स्थान तक पहुंचे ।रामप्पा ने वह जगह बताई। गोताखोरों ने गोता लगाया और डूबे जहाज की खोज शुरू कर दी। थोड़ी मशक्कत के बाद डूबे जहाज का पता लगा लिया। जहाज को बाहर निकाला उसमे बहुत सोने की अशर्फिया थी। डूबे जहाज को बाहर निकाला। उसकी सूचना सरकार को दी। सरकार ने रामप्पा की सूझबूझ और ईमानदारी के लिए पांच लाख का इनाम दिया। जिससे उसने नई नाव खरीदी और घर बनाया। रामप्पा अपने परिवार के साथ खुशी खुशी रहता है।

कहानी का से यह शिक्षा मिलती है। कभी कभी दया की भावना और ईमानदारी भी किस्मत के द्वार खोल देती है।

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